1
बौद्धिकता के
ठेकेदार
क्या जाने
आम आदमी की ठोकरे
देते हैँ नारे
जलाते वक़्त की
धारणनाये
खुद को लगाते पँख
मिल सके उन्हें,उड़ान
दे उन्हें पहचान
नये ठेकेदार होने
की........
बेख़बर सभी
आदमी होने के लिये
पँख नहीं
जमीं की पकड़ जरूरी
है।
सीमा स्मृति
2
लगने लगे सीले-सीले
जो जिन्दगी के
सिलसिले
जान ले सख़ी
खुद ही से खुद के
सम्बन्ध
कहीं हो गये हैं
कड़वे -कटीले।
सीमा स्मृति
3
हमदर्द की तलाश
होती है ख़ास
खोजते हैं सभी दिन
रात
हो बेख़बर-
हमदर्द में भी है
दर्द
बस ये दर्द है तेरे
साथ
इस को बना ख़ास
यही देगा साथ
नये अहसास
नया विश्वास
नई आस
पूर्ण होगी तेरी तलाश।
सीमा स्मृति
4
कहते हैं लोग
हमें जिन्दगी में क्या मिला?
रख पलड़े में,
दूजी जिन्दगी
ग्रंथो
में खोजा
नाम ध्यान में खोजा
साधना में खोजा
प्रकृति में खोजा
उत्तर न मिला क्या है जिन्दगी
प्रश्नो के उत्तर में नहीं
इसी पल में है- जिन्दगी।
सीमा स्मृति
5
कमबख्त नींद भी, आज सहेली सी रूठी है
पलकों से भी नाता तोड़े बैठी है।
सीमा स्मृति
6
ख़ामोशी में जो न हो
दर्द और शिकायत की टीस
ऐसा कहाँ अपना नसीब??
सीमा
स्मृति
7
जब से खुद पर फ़िदा
होना सीख लिया
होंठ नहीं आँखे भी
मुस्कुराने लगी हैं।
8
जो
देखी अपनी ही तस्वीर
यूँ
लगा
अब
भी कोई सपना आँखे
सम्भाले
बैठी हैं।
9
होठों
से निकले बोल
चाशनी
से,सत्य की तहे दबा देते हैं
दिल से निकले बोल, बरखा से
सत्य
की मीठास किया करते हैं।
सीमा
स्मृति
10
रिश्तों
की उलझनें
बॉलटिंग
पेपर सी
सोख
लेती है
एक
ही पल में जिन्दगी की मीठास ।
सीमा
स्मृति
11
मत
किया करो
वक़्त
से कोई सवाल
उत्तर
के इंतज़ार में
अक्सर
जिन्दगी की लय बिगाड़ देता है।
सीमा
स्मृति
12
अंतराष्ट्रीय महिला दिवस
आज
बलत्कार
कर
जलाई
गई
बेइज्जत
की गई
घर
से निकाली गई
अजन्मी
मिटाई गई
पिट
पिट मारी गई
कल
अंतराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की सुर्ख़ियो मे दबी
कल
की ख़बर आज दिखाई गई।
सीमा
स्मृति
13
बनावट
की तहें इतनी मोटी हो गई कि
अहसास
की खुरपी,
खुन्दी हो
टूटने
की कगार पर है।