Tuesday, November 24, 2015

भटकन

भटकन की रेत पे
जलते हैं पाँव
कितनी भी तलाशो
मिलती नहीं छाँंव ।
बिना पानी का ये दलदल
छीन लेता है चैन हर पल । 

जिन्‍दगी  भूल जाती है
गाना, गुनगुनाना
मुस्‍कराना
अपनी ही ताल पे थिरन जाना
किस्‍मत की दुहाई से
बढ़ी भटकन
कर्म की मशाल से
छटी है भटकन।

सीमा स्‍मृति

Friday, October 30, 2015

क्षणिका

1
एक सत्‍य
बेल से लिपटे सर्प-सा
मन की देहरी –पे
सरसराने लगा
लम्‍बी खामोशी
गूंजती रही फुंकार
कुछ सर्प-
बिल नहीं खोजा करते।

2
स्‍मृतियों के बीच
दुबका मन
कब तक जियेगा
दूब के अन्‍दर
पल रहे पेड़ होने का भ्रम ।

3
खामोश हो गई, हवा
इस डर से
आदतें भी अजीब हुआ करती हैं
साँस लेने को
जि़न्‍दगी समझने की आदत।
4
जीया दर्द
खोजती रही खिड‍़कियाँ
क्‍यों रही अनजान
दरवाजे की अहमियत से।
5
वो तूफान था
हवा समझ
जीया जो भ्रम
पल भर
झोंका वो
नयनों में नमी
ताउम्र की दे गया।


6
मिलती है हँसी
शर्तो पे
मुस्‍कान के लिए
इक आइना ही काफी है ।

सीमा स्‍मृति


Sunday, October 11, 2015

दिशा

 कुछ  पाने की जिद्द
बदल देती है 
आचार! व्‍यवहार! और संस्‍कार 
करती है बेचैन 
छीन लेती है चैन
और
जुनून कुछ कर गुजरने का
देता सूकून 
दिशा! भक्ति! शक्ति!
देता अर्थ
रोकता अनर्थ
ये झीनी सी परत 
जिदृ और जुनून में 
जीवन  दिशा है बदल देती । 

सीमा स्‍मृति




विविध

     1
वक्‍त की धार
बन कटार
शब्‍दों के टुकड़े करती रही
स्‍याही क्‍या लिखेगी 
हाइकु कहानी कविता
एहसास के पन्‍नों पे
हर स्‍याही रंग बदलती रही ।

2
परत दर परत 
दीवार पे पेन्‍ट चढ़े से -ये रिश्‍ते
बदले मौसम में
झर जाते हैं 
पपड़ी  बन -बन। 

3
अंदर का मैं -----शब्‍द जाल बना सिर्फ
मिमियता है
लोग इसे जीवन कहते हैं।  

4
अभी कुछ कर्ज बाकि होंगे  सॉंंसों के
वरना--
लबों की हँसी 
यूँ टुकड़ों में ना मिलती 

आदत

आदतें भी अजीब हुआ करती  हैं.......
बात करने की आदत
दर्द सुनाने
शिकायत करने
तारिफ सुनने
खुद को साबित करने
इनकार  इकरार प्‍यार करने
मुस्‍कराने 
कुछ कर गुजरने
बोलने
सुनने
खामोश रहने की आदत
फि़कर और जिकर
खुश और दुखी रहने  की आदत
सांसों के चलने तक
रंग बदलती 
दोस्‍तों -आदतें भी अजीब हुआ करती हैं।

सीमा स्‍मृति

जिन्‍दगी

अपनी ही सोच का प्रवाह है- जिन्‍दगी
इस  क्षण नाम है -जिन्‍दगी
कुदरत का करिश्‍मा है - जिन्‍दगी
सांसो की लय है - जिन्‍दगी 
शब्‍दों में कब बंधी है- जिन्‍दगी
ऐ दोस्‍त 
वक्‍त की सलीब पे हैरान है- जिन्‍दगी ।
सीमा स्‍मृति

Saturday, September 12, 2015

हाइकु

प्रेम की बात
निशब्‍द एहसास
मौन स्‍वीकृति।

डर के तार
सोखते एहसास
दर्द सलीब ।


सीमा स्‍मृति 

क्षणिकाएँ

खोज  दीवानी
आँखों
साँसों
रिश्‍ते-नातों
जिन्‍दगी की बातों में
इंसानों
मकानों
दुनिया की दुकानों में
 खोज रही
कौन सी छवि
सीमा स्‍मृति

Wednesday, June 3, 2015

ख़ामोशी

1

तेरी ख़ामोशी

ल्हड़ नवेली-सी

बनी पहेली ।

2

दर्द से मीठी

ये ख़ामोशी की दवा

स्वाद कड़वा ।

3

कौन सुनेगा

ख़ामोशी की आवाज

शोर के साज!

4

पी ली ख़ामोशी

घुली मीठी मुस्कान

करे हैरान ।

5

ख़ामोशी– संग

बदले हर छिन

जीवन– रंग ।

6

बजने लगी

ये तेरी ख़ामोशियाँ

ज्यों शहनाई।

7

धड़कन भी

दे ख़ामोशी की ताल

करती धमाल।

8

नैना समा

यूँ ख़ामोशी के साये

कैसे छिपाएँ!

9

छूटा  वो गाँव

मूक राह निहारे

सदा पुकारे।

10

ये ख़ामोशियाँ

गजब जादूगर

देख असर ।

-0-

धूप के पाँव

हर दिशा में

मृग  मरिचिकाऍं 

कैसे बचाएँ ।

2

शुष्क  रिश्तों-सी

मुरझाई   लताएँ

खोजें  आर्द्रता।

3

जल  -अभाव

पड़ने  लगा प्रभाव

समझे  भाव ।


सीमा स्मृति 

Friday, May 8, 2015

मन के द्वार


1
मन का पंछी
पाने को पहचान
भरे उड़ान ।
2
मन है देता
जीवन आधार
मंत्र अपार।
3
मन की आंखे
खोले हजारों द्वार
करो विचार ।
4
देखे दुनिया
मीन सी तड़पन
है दु:खी मन ।
5
मीठी लगे हैं
ये मन की बतियाँ
बांटे सखियाँ ।
6
ये बाल मन
बिन बात मुस्‍काये
दर्द भुलाये।
7
मन की ताल
दूजे से मिल जाती
मंत्र सुनाती ।
8
दर्द सोखता
यूँ रेत सोखे पानी
मन ने ठानी । 
9
देखे जो रंग
मचले मनमौजी
तितली मन ।

10
यूँ बिच्‍छू बन
ये जहरीला मन
सोखता तन ।
11
शब्‍दों के तीर
मज़बूरी की बेड़ी
मन ना छोड़े ।

सीमा स्‍मृति


   


Saturday, April 18, 2015

हाइकु


 1
यादें मृदुल
हर दर्द मिटा दें
दे के संबल ।
  2
जीवन बीता
तेरी यादों के संग
यूं भी संगम।
  3
ये इंतजार
सिमटा ख़ामोशी में
करता शोर।
4
दर्द है बाकी
आवाज की ख़लिश
सुनाती हाल ।
5
मन की माला
टूटी, बिखरे मोती
मिला ना साथ ।
6
गाते मल्‍हार
छेड़े हैं स्‍वरागिनी
साँसो के तार ।
7
हरे थकान
खिली मेरे आँगन
मीठी मुस्कान ।
8
गाती कोयल
लिखे किसने बोल
दें, मिश्री घोल ।
 9
कौन सुनेगा
दर्द भरी आवाज
बधिर साज।
10
ख़ामोश हवा
यूँ ख़ामोश सांसों सी
लेती सिसकी ।
11
आई है भोर
लाई शुभ सन्‍देश
हो श्री गणेश ।
 12
मन के हंस
चले लहरों संग
गाते रागिनी ।
 13
यादों के पाखी
लेने को थे उड़ान
खिचें मुस्‍कान ।
14
रूह को मिले
अद्भुत सुकून सी
तेरी मुस्‍कान।
15
कहती भोर
ख्‍वाब नये तू सजा
कर ये पूजा।
 16
सिमटी शाम 
ख़ामोशी का रंग ले
फैलाती बाहें ।
17
ये गुपचुप
बातें, हँसी ठिठोली
धरा की झोली ।
18
ये नटखट
खेले है, आंख-मिचौनी
धरा संगिनी ।
19
है झिलमिल
मोहिनी-सा ये रूप
श्रद्धा स्‍वरूप ।


यादें -हाइबन

यादें
आजकल चारों ओर फैले स्‍वाइन फ्लू को देख कर बरबस मुझे बीस बरस पुरानी यादों ने घेर लिया। परत दर परत मेरे ज़हन में तस्‍वीरें उभरने लगी ।
सीमा, तुम को कितनी बार मना कँरू, तुम मनु के साथ साइकिल पर बाजार तक मत जाया करो। अभी बहुत छोटा है । अभी उसे पूरी तरह से साइकिल चलनी भी नहीं आती है। कहीं ऐसा ना हो तुम दोनों को गिर जाओ या कोई चोट लग जाए। मम्‍मी ने डांटते हुए कहा।
नहीं, मम्‍मी वो छोटा पर मेरा बहुत ख्‍याल रखता है। वो मेरे लिए बहुत ध्‍यान से साइकिल चलाता है। मेरा स्‍वीटू सा मिनी फ्रेंड है मनु।
मुझे याद है, जब भी पापा और भईया घर से बाहर होते तो मुझे बस स्‍टैंड, बाजार या छोटे छोटे कामों के लिए निर्भर रहना पड़ता था।दोनों टांगों में नौ माह की अवस्‍था में पोलियो के कारण मेरी जिन्‍दगी का सफर कुछ अलग था।  मनु मेरा मिनी फ्रेंड, जो मुझ से कम से कम 15 वर्ष छोटा था। पापा और भैया के घर से बाहर होने पर,  हमेशा जब जरूरत होती मेरे हर कार्य में सहायता करता था।
हाँ, उस दिन को याद कर मेरी हँसी बन्‍द नहीं पा हो रही थी। वो मुझे कालेज जाना था और बस-स्‍टैंड छोड़ने के लिए मैंने मनु को कहा। पता नहीं, उस दिन क्‍या हुआ गली के मोड़ से पहले ही उसकी साइकिल..............धम् से नाली  में चली गई। ये गनीमत थी, नाली गहरी नहीं थी। हम दोनों गिर गये कोई चोट नहीं आई । बस थोड़े कपड़े खराब हो गए। आस-पास देखने वाले लोग जोर जोर से हँसने लगे।
मनु के साथ बिताये पलों की कितनी ऐसी यादें थी। उसके सभी लड़के लड़कियों मित्रों के सा गोल गप्‍पे खाने जाना, किसी को डराना, पिक्‍चर देखना। बारिश में धूमने जाना और ना जाने कितनी शरारतें थी।
जिन्‍दगी का सफर बढ़ता गया। मनु की नौकरी लगी, वो दुबई चला गया। उसकी शादी हो गई। फिर एक दिन ख़बर आई की मनु की स्‍वाइन फ्लू से मृ‍त्‍यु हो गई। मैंने उस समय पहली बार स्‍वाइन फ्लू शब्‍द सुना था। बची तो बस यादें ....यादें

मिश्री सी मीठी
निबौरी-सी कड़वी
अनंत यादें।

सीमा स्‍मृति






Friday, March 6, 2015

होली आई रे !


   1
है होली आई
फागुनी पुरवाई
ये मस्‍ती छाई।
      2
है राधा संग
बरसाने के रंग
कान्‍हा मलंग।
        3
ले पिचकारी
मस्‍तानों की टोली
है गाती होली ।
     4
हे राधे राधे
रंगों की पहचान
प्रेम राह दे।
     5
रंग दे रंग
जीवन को रंग दे
अच्‍छे संग दे।
   6
गुजिया खाई
है भंग रंग लाई
रूठी भौजाई। 
   7
आब गुलाल
हैं करते धमाल
गुलाबी गाल।
    8
जीवन रंग
सखियों तुम संग
मन-तरंग ।
    9
भईया संग
बहनों ने सजाएं
हाइकु रंग।
10
दुश्‍मन बनें
भाई, जो प्रीत-रंग
होली मनाई ।
     11
बृज की होली
कर रही धमाल
प्रेम गुलाल ।
   12
एक अनूठा
हाइकु परिवार
देता से प्‍यार। 
 
सीमा स्‍मृति


    

Sunday, March 1, 2015

हाइगा


होली आई रे !


   1
है होली आई
फागुनी पुरवाई
ये मस्‍ती छाई।
      2
है राधा संग
बरसाने के रंग
कान्‍हा मलंग।
        3
ले पिचकारी
मस्‍तानों की टोली
है गाती होली ।
     4
हे राधे राधे
रंगों की पहचान
प्रेम राह दे।
     5
रंग दे रंग
जीवन को रंग दे
अच्‍छे संग दे।
   6
गुजिया खाई
है भंग रंग लाई
रूठी भौजाई। 
   7
आब गुलाल
हैं करते धमाल
गुलाबी गाल।
    8
जीवन रंग
सखियों तुम संग
मन-तरंग ।
    9
भईया संग
बहनों ने सजाएं
हाइकु रंग।
10
दुश्‍मन बनें
भाई, जो प्रीत-रंग
होली मनाई ।

सीमा स्‍मृति


Monday, January 26, 2015

“खोज”


मिश्री से मीठे,
निबोरी से कड़वे,
कैक्‍टस से कटीले,
फाहे से सोखते दर्द,
रेत से सरकते,
दलदल से खींचते,
दिन से उजले,
अमावस्‍या की रात से घनेरे,
गोंद से लिजलिजे,
हवा से हल्‍के,
एहसास से बहते,
खुली चोट से विभत्‍स,
हैवानियत से क्रूर,
प्रकृति से मोहक,
आसमान से विस्‍तृत,
धरा से रहस्‍यमय,
सागर से गहरे,
वक्‍त से अनिश्चित,
फूलों से कोमल
मानवीय रिश्‍तों के ये अनूठे रंग-रूप
बिखरे जीवन के अदभुत कैन्‍वस पर
करते कभी हैरान कभी परेशान
कभी करते जीवन को आसान
कभी करें बेचैन
कभी छीन लेते चैन
रिश्‍ते
प्रश्‍नों की सलीब---खोजते अर्थ।

सीमा स्‍मृति