Friday, October 30, 2015

क्षणिका

1
एक सत्‍य
बेल से लिपटे सर्प-सा
मन की देहरी –पे
सरसराने लगा
लम्‍बी खामोशी
गूंजती रही फुंकार
कुछ सर्प-
बिल नहीं खोजा करते।

2
स्‍मृतियों के बीच
दुबका मन
कब तक जियेगा
दूब के अन्‍दर
पल रहे पेड़ होने का भ्रम ।

3
खामोश हो गई, हवा
इस डर से
आदतें भी अजीब हुआ करती हैं
साँस लेने को
जि़न्‍दगी समझने की आदत।
4
जीया दर्द
खोजती रही खिड‍़कियाँ
क्‍यों रही अनजान
दरवाजे की अहमियत से।
5
वो तूफान था
हवा समझ
जीया जो भ्रम
पल भर
झोंका वो
नयनों में नमी
ताउम्र की दे गया।


6
मिलती है हँसी
शर्तो पे
मुस्‍कान के लिए
इक आइना ही काफी है ।

सीमा स्‍मृति


Sunday, October 11, 2015

दिशा

 कुछ  पाने की जिद्द
बदल देती है 
आचार! व्‍यवहार! और संस्‍कार 
करती है बेचैन 
छीन लेती है चैन
और
जुनून कुछ कर गुजरने का
देता सूकून 
दिशा! भक्ति! शक्ति!
देता अर्थ
रोकता अनर्थ
ये झीनी सी परत 
जिदृ और जुनून में 
जीवन  दिशा है बदल देती । 

सीमा स्‍मृति




विविध

     1
वक्‍त की धार
बन कटार
शब्‍दों के टुकड़े करती रही
स्‍याही क्‍या लिखेगी 
हाइकु कहानी कविता
एहसास के पन्‍नों पे
हर स्‍याही रंग बदलती रही ।

2
परत दर परत 
दीवार पे पेन्‍ट चढ़े से -ये रिश्‍ते
बदले मौसम में
झर जाते हैं 
पपड़ी  बन -बन। 

3
अंदर का मैं -----शब्‍द जाल बना सिर्फ
मिमियता है
लोग इसे जीवन कहते हैं।  

4
अभी कुछ कर्ज बाकि होंगे  सॉंंसों के
वरना--
लबों की हँसी 
यूँ टुकड़ों में ना मिलती 

आदत

आदतें भी अजीब हुआ करती  हैं.......
बात करने की आदत
दर्द सुनाने
शिकायत करने
तारिफ सुनने
खुद को साबित करने
इनकार  इकरार प्‍यार करने
मुस्‍कराने 
कुछ कर गुजरने
बोलने
सुनने
खामोश रहने की आदत
फि़कर और जिकर
खुश और दुखी रहने  की आदत
सांसों के चलने तक
रंग बदलती 
दोस्‍तों -आदतें भी अजीब हुआ करती हैं।

सीमा स्‍मृति

जिन्‍दगी

अपनी ही सोच का प्रवाह है- जिन्‍दगी
इस  क्षण नाम है -जिन्‍दगी
कुदरत का करिश्‍मा है - जिन्‍दगी
सांसो की लय है - जिन्‍दगी 
शब्‍दों में कब बंधी है- जिन्‍दगी
ऐ दोस्‍त 
वक्‍त की सलीब पे हैरान है- जिन्‍दगी ।
सीमा स्‍मृति