Saturday, March 29, 2014

क्षणिका

1 वोह सांसों के साथ इक लम्‍हा बह गया,
   पकड़ो मत।
   ये क्‍या कम है,कौन अपना था
   समझ आ गया।
2 अपने मन की तहें समझ ना आई
    कहते हैं दुनिया देख ली।
3 वो कहते हैं,जिन्‍दगी में कुछ ना मिला?????
   ओ बेखबर इस प्रश्‍न ने सब झुलसा दिया।
4 हर  पल मेें जिन्‍दगी जीना जिनको अा गया
   वो नहीं खोजा करते साधना का साथ
   


Friday, March 28, 2014

वक्‍त की धार

सीमा स्मृति

1

वक्त की धार

नैया पार या डूबे

हैमझधार ।

2

पढ़ लो आँखें

सुना देंगी कहानी

ये अनकही।

Monday, March 17, 2014

जिन्‍दगी पहेली

    1 जिन लम्‍हों को समझ जिन्‍दगी,
           जिया मैंने
     आज एक अजब पहेली बन
           जिन्‍दगी में हैं छाये ।


2        बरसों साथ जीने से क्‍या होता है
               कुछ तहें साथ जीने से नहीं
   वक्‍त की तपन में ही
              खुला करती हैं।

3        गजब पहेली है जिन्‍दगी
                       जितनी सुलझी लगती है
      उतनी ही नई बुनती
                      बुन लिया करती है।

4        आज भी कुछ बीते लम्‍हे
                   प्रस्‍फूटित होते है नयी कोंपल बन
   मन उल्‍लास में हिलोरे लेना चाहता है
                   ठीक उसी क्षण
   वो वर्तमान नामक दराती से
                   काट डालते हैं कोंपल, बेदर्दी से।