Wednesday, August 17, 2011

संघर्ष
अन्‍धकार से लड़ने की परिभाषा से दूर,
रोशनी से आवरित उस भीड में,
जिसकी चकाचौंध में मिचमिचाने लगी है आंखे,
धुंधलाने लगे है रास्‍ते,
खो गई है शक्‍ति,
पस्‍त हो गई है सारी धारणानाएं,
संधर्ष सामर्थ्‍य और चेतना के संग
निकल पडा है
किसी नये सेतु के सहारे
उस पार
समकालीन जीवन मं‍‍‍‍‍थन करने ।

Sunday, August 7, 2011

पढ लेते हैं कलमा सभी
कौन पढता और समझता है
हाशिए भी कहते हैं कुछ कहानी ।
सीमा स्‍मृति

Friday, August 5, 2011

समय की धारा
गम के साये में समझ पाये,
कौन अपने हैं कौन है पराये।
पिघली बर्फ,नदी हो गई,
मिल सागर से, तूफान में तबदील हो गई,
सागर के हिस्‍से सिर्फ इलजाम हैं आएं।
निगल गई,धुंआ उगलती चिमनियां,
तारे आसमान के,
कुदरत के रंग है निराले, लोग कहते हैं आए,
अपनी करनी कब समझ हैं पाये।
आतंकवाद, आतंकवाद का गाना जो हैं, गाते आज,
शब्‍द उन्‍हीं ने हैं पिरोये,
सुर भी उन्‍हीं ने हैं लगाये,
धुन हो गई मतम की, कौन, किसे, क्‍या समझाये ।
बन्‍द है एक कसाब कैद में,
यूं लगता है, दिलो कैद हैं कसाब ही के साये ।
सीमा स्‍मृति