उत्तर
शोर सुन
नींद से जागी आंखे
हैरान हो फैल जाया करती थी
देख
सुबकती मां के शरीर पर पडे
नीले हिस्सों
और
पिता के डगमगाते कदमों,
तने चेहरे को ।
तेल लगाती, सहलाती
खामोश अनगिनत प्रश्न,
पूछा करती थी वो मां से ।
आज
अनुतरित मां का वही चेहरा
उत्तर बन
उसकी आंखों में सिमट आता है
प्रश्नों का वही सैलाब
उसकी बेटी की आंखों में
उतर आता है।
सीमा ‘स्मृति’