Monday, February 21, 2011

उत्‍तर
शोर सुन
नींद से जागी आंखे
हैरान हो फैल जाया करती थी
देख
सुबकती मां के शरीर पर पडे
नीले हिस्‍सों
और
पिता के डगमगाते कदमों,
तने चेहरे को ।
तेल लगाती, सहलाती
खामोश अनगिनत प्रश्‍न,
पूछा करती थी वो मां से ।
आज
अनुतरित मां का वही चेहरा
उत्‍तर बन
उसकी आंखों में सिमट आता है
प्रश्‍नों का वही सैलाब
उसकी बेटी की आंखों में
उतर आता है।
सीमा स्‍मृति

Saturday, February 19, 2011

लघुकथा

भविष्‍य

उस दिन आफिस में मुहरम की छुटी थी । सर्दी के मौसम में सूरज देवता की
पूरी मेहरबानी होने का मतलब है , कुछ मुंगफलियों हों, रेवडी गुड, खुला
आसमान और थोडी सी मौज मस्‍ती । सोचा बच्‍चों को इंडिया गेट लेकर जाया
जाए। वहां की खुली धूप में पि‍कनिक ही कर ली जाए। खाने और खेलने का सामान
बंधा , कार निकाली चले पडे ।
कार में बच्‍चे बात कर रहे थे बुआ इंडिया गेट के पास ही तो
राष्‍ट्रपति भवन है ना। मैने कहा , ‘हां चलते चलते मैंने कार
राष्‍ट्रपति भवन की और मोड ली। मैं बच्‍चों को आस पास नजर आ रही सभी
इमारतों के विषय के बारे में बता रही थी।
तभी मेरा भतीजा, संसद भवन की आ‍ेर इशारा कर के बोला , बुआ वो क्‍या है?
बेटा, वो संसद भवन है।

संसद भवन क्‍या होता है? सनी बोला ।

बेटा हमारे देश का सारा काम काज इसी संसद भवन से होता है। हमारे द्वारा
चुने गए सभी नेता यही से देश का भविष्‍य निश्चित करते है।
अरे अरे बुआ , क्‍या यही वो जगह है, जहां वो सभी एक दूसरे को कुर्सी
मारते हैं, खूब हंगामा करते हैं, जो टी वी में भी आता है । मैने देखा था
क्‍या लडाई होती है। सनी, तुम भी देखना खूब मजा आता है कोई किसी की बात
नहीं सुनता है । एक आंटी चुप करने को कहती रहती है,और कोई चुप नहीं करता
है, पिंकी ने कहा।

बुआ चलो, बुआ चलो चल कर देखते है लडाई ।क्‍या लडाई अभी भी हो रही होगी, सनी ने कहा ।

मैं इंडिया गेट की तरफ गाडी मोंड चुकी थी और पिंकी द्वारा संसद की इस
पहचान पर स्‍तब्‍ध थी ।

सीमा स्‍मृति

Wednesday, February 16, 2011

सर्दी


सर्दी का अर्थ,
गरम रजाई में
कविता करते शब्‍दों में नहीं, ठिठुरता,
ऐस्‍सी कारो के दरवाजों से नहीं झंकता,
शरीरों की गर्मी से नहीं मिटता,
सर्दी के लिए सरकारी इंतजामों की डीगो से नहीं, ढकता
सर्दी का अर्थ,
भूख्‍ो पेट
सूखे बदन,
बिना छप्‍पर,
फटी शाल लिए,
सुबह अखबार और इंटरनेट के किसी कोने में
' शीत लहर से पांच की मृत्‍यु '
सिर्फ अपने अर्थ खोजता है।
सीमा 'स्‍मृति'

Sunday, February 13, 2011

युग

यूज एंड थरो की संस्‍कृति 
प्रयोग करो और फेंक दो
डिब्‍बे, इंसान या भावनाएं
इन्‍हें साथ लेकर चलना आसान है
उससे भी ज्‍यादा आसान है फेंक देना
जितना चाहो प्रयोग करो 
प्रयोग करने की नियामावली तुम्‍हारी अपनी है ,
एक इंसानी बम से उड़ सकते हैं 
हजारो इंसानो के चिथड़े
डिब्‍बों की तो की क्‍या बिसात है।
भावानाएं उनका क्‍या
जिन्‍दगी बदलती है
बदलती हैं जरूरतें
मंत्र एक है, वर्तमान में जियो
फिर कुछ भी बदलो या फेंको
भावानाए क्‍या चीज हैं
ये संस्‍‍कृति है इकसवीं सदी की
रूको मत बढते जाओ
चाहे बहाने पड़े , मगरमच्‍छ के आंसू
प्रयोग करो 
डिस्‍पोजेबल रूमाल और फेंक दो,
मुस्‍कराओ और बढ़ते चलो
यूज एंड थरो की संस्‍कृति

सीमा स्‍मृति
समय की धारा
गम के साये में समझ पाये,
कौन अपने हैं कौन है पराये।
पिघली बर्फ,नदी हो गई,
मिल सागर से, तूफान में तबदील हो गई,
सागर के हिस्‍से सिर्फ इलजाम हैं आएं।
निगल गई,धुंआ उगलती चिमनियां,
तारे आसमान के,
कुदरत के रंग है निराले, लोग कहते हैं आए,
अपनी करनी कब समझ हैं पाये।
आतंकवाद, आतंकवाद का गाना जो हैं, गाते आज,
शब्‍द उन्‍हीं ने हैं पिरोये,
सुर भी उन्‍हीं ने हैं लगाये,
धुन हो गई मतम की, कौन, किसे, क्‍या समझाये ।
बन्‍द है एक कसाब कैद में,
यूं लगता है, दिलो में कैद हैं कसाब ही के साये ।
सीमा स्‍मृति