Tuesday, December 30, 2014

नव-वर्ष


नव-वर्ष  की  शुभकामनाओं  के लिए
एहसास की सुगन्‍ध चाहिए
यूं तो  नि:शब्‍द भी----
जीवन की बगिया महकती है,
उम्‍मीदों  के पंछी चहकते हैं,
संभावनाओं की तितलियां मचलती हैं,
आस के भँवरे गुनगुनाते हैं,
और
कहते हैं, बार-बार
भूलो इसी क्षण
जो कल बीते,कठिन पल
देखो नई दिशा,
फैलाओ नव उल्‍लास,
करो नव प्रयास,
मिले नई आशा,
जीवन को दो नई परिभाषा।
नव-वर्ष की नव किरण देती पैगाम
शुभ हों ! पूर्ण हों! फलीभूत हों !
तुम्‍हारे सभी काम ।

सीमा स्‍मृति


बादल


जिन्‍दगी



Monday, December 29, 2014

हाइगा


हाइगा जीवनदाता


ममता

1
यशोदा कहो,
या पुकारो देवकी
इक रूप -सी ।
2
है कभी ढाल,
कभी तलवार
उर विशाल ।
3
ममता छाँव
है शीतल चाँदनी
भरे है  घाव ।
4
भूख की आग
झुलसती ममता
बेचती कोख ।
5
इंसान ही क्‍या
जानवर भी जाने
ये मूक बोली ।

सीमा स्‍मृति 

सर्दी

1                      
सर्दी की शामें
संवेदना-सी जमी
ढूँढती आँच ।
2
खोजते रहे
टूटा-सा आशियाना
सर्दी का आना।
3
रैन-बसेरा
ये ना मेरा,ना तेरा
हुआ सवेरा।
4
सर्दी के दिन
वो कुनकुनी धूप
मिला खजाना।
5
अमृत लगे
इक टुकड़ा धूप
खोजें निगाहें।
6
शीत लहर
खोजें अर्थ सर्दी के
पाँच मरे हैं । 
7
दुबके पंछी
ठिठुरते हैं इंसाँ
करे  क्या बयाँ ।
8
जम- सी गई
खोजती लकड़ियाँ
वो दो निगाहें।
          
 सीमा स्‍मृति 

नव वर्ष

1

कुछ खट्टा ये
कुछ मीठा बीता है
गया वर्ष रे।
2
हर्षित मन
नई उम्‍मीदों -संग
भरेगा रंग ।
3
नव संकल्‍प
सूर्य -किरन लाई
धरा मुस्‍काई।
4
ये जाता पल
कहे- मुस्‍कराओ
नए वर्ष में।
5
मिली दिशाएँ
चलते चले जाएँ
रुकना नहीं ।
6
आज अँधेरा
कल नया सवेरा
आए-मुस्काए ।
 7
सुनो दस्‍तक
चाहे परिवर्तन
वर्ष- नूतन ।
8.
करो स्‍वीकार
हाइकु परिवार
मेरी बधाई।

सीमा स्‍मृति

Sunday, December 28, 2014

एहसास

ये एहसास
बेकाबू  नदी ना हों
खामोशी का बांध जरूरी है
चाहत है कितनी गहरी
नि:शब्‍द एहसास जरूर है । 
आसान है  कहना
पर 
बन्‍धन में ख़ामोशी भी जरूरी है।  
                                 सीमा स्‍मृति

पल

मांगे जो दो पल
सिर्फ अपने लिये
हज़ारों बहाने अफ़साने मिले
अपनों के भेष में पराये मिले। 

                 सीमा स्‍मृति

हाइगा


हाइगा


मुस्‍कान


माँ

हर  सुबह
दुओं की पोटली 
निकालती मेरी माँ
चुन दुआएं
राहों में देती बिछा
कष्‍टाें  से लेती बचा ।
                 
           सीमा स्‍मृति

हाइगा


राहें


हाइगा


हाइगा


हाइगा


हाइगा


हाइगा


अनिश्चित

कैसे बनेगें हम किसी के जीने का मकसद दोस्‍त
निश्चित है मकसद की डोर 
तेरी मेरी सोच से भी कहीं आगे।
                                        सीमा स्‍मृति

वक्‍त

कभी ख़ामोशी लगती है जुबां प्यार की
कौन जाने, कब बन जाये सज़ा प्‍यार की ।
                               सीमा स्‍मृति

Friday, December 26, 2014

प्रतिबिम्‍ब

वो आया था मेरी जिन्‍दगी की सिलवटें पढ़ने
देख आईना नि:शब्‍द लौट गया।
                          सीमा स्‍मृति
  

Thursday, December 25, 2014

पहचान

देख ये है हैवानियत
कुदरत  भी  है हैरान
क्‍या मैंने ही बनाया था इंसान
अपनी ही नस्‍लों को करता बर्बाद
किस मुहँ  से खुद को कहता इंसान
चिथड़े उड़ाता अपने ही जिगर के टुकड़ों
और
कहे ये है मुझसे मिलने का है रास्‍ता
अरे ओ शैतान
खुद को पहचान
ना कह खुद को इंसान
वो लाल भी जन्‍मा था तेरी मां सी कोख से
जो उजाड़ी तूने ले, मेरा नाम ।
कौन सा रास्‍ता कैसे रास्‍ता मेरे नाम
अरे इंसान बस अपने अन्‍दर झांक ।

सीमा स्‍मृति

हाइगा


मुलाकात


तुझसे मिलना
इक रवायत नहीं
किसी उम्र का
महकता सुरूर भी नहीं
बदली हवाओं में
थमा सा कोई नशा भी नहीं ।
तुझ से मिलना
जिन्दगी में मिले छालों को,
अपने ही हाथों से मरहम लगाना -सा
दर्पण में अक्स की पहचान सा
रात के बाद दिन से मुलाकात -सा
यथार्थ के टुकडों को सँजोना -सा
अतीत में थमे एहसास सा लगता है मुझे ।

सीमा स्‍मृति


कोहरा

क्‍यों पनपने लगती है
वो बेल, हमारे भीतर 
ले कोहरे की छुहन ।

काटते  रहे  हर बार 
टुकड़ा टुकड़ा करते बेल
जो पनपती हमारे भीतर 
लिजलिजी केंचुए सी, 
जिददी आक्‍टोपस सी,  
गिरगट से रंग बदलती,  
बढ़ती बे-खौफ हर पल
कभी कभी मुस्‍कराती  
पूछती अनेक सवाल 
और 
डाल कोहरे की चादर 
जकड़ती पूरा अस्तित्‍व 
वो बेल जो पनपती हमारे भीतर।
 सीमा समृति 


हाइगा


ऐसा क्यों?  
 सीमा स्मृति
कल शाम जब टेलीविजन चलाया ही था कि न्यूज़ आई कि फरीदाबाद के होली चाइल्ड स्कूल के एक तेरह साल के बच्चे ने जो आठवीं क्लास में पढ़ता था उसने स्कूल के बाथरूम में पैट्रोल डालकर अपने को आग लगा ली। मन और सोच जैसे सुन्न पड़ गए। ये क्या हैस्कूल में पानी की बोतल में पैट्रोल डाल कर ले गया । कसूर किस का है? माँ,बापटीचरहमारा एजूकेशन सिस्टम और समाज !कौन है इस घटना का जिम्मेदार ? प्रश्नों का एक सैलाब हिला गया। हम बच्चों को क्या शिक्षा दे रहे हैं?आसान है एक –दूसरे पर दोष मढ़ना ।माँ-बाप आसानी से टीचर को दोषी कह सकते हैं और टीचर के पास एक क्लास में तीस चालीस बच्चे होने का दर्द और हर बच्चे पर वन टू वन ध्यान न दे पाने का कारण । क्या कारण होगा कि एक इतना छोटा बच्चा जिसने अभी जीना भी शुरू नहीं किया,ह जीवन को खत्म करना चाहता हैह कौनसा दबाव होगा जो उस इस हद तक सोचने को मजबूर करे?हमारे समाज में,हमारी शिक्षा प्रणाली क्या इतनी संकुचित हो चुकी हैक्या हम बच्चों को रोबोट बना रहे हैं?क्या नम्बर की दौड़ में अंधे हम जीवन को ली देने वाले गहरे काले गड्ढे नहीं देख पा रहे हैं?मन बार -बार उस बालमन की स्थिति की कल्पना नहीं कर पा रहा कि उसे खुद को इस प्रकार दर्द देकर उस दबाब से मुक्ति पाना चाहता था। मन का हर तारपूर्णततार-तार हो रहा है। शायद उस बच्चे के मन की बात समझने की बात तो दूर है किसी ने उसे कभी सुना ही नहीं। वरना इतना छोटा बच्चा  ऐसे सोच नहीं पाता। वो पैंतालीस प्रतिशत जल गया ,परन्तु अब खतरे से बाहर है पर क्या उसका शेष जीवन खिल सकेगा।शरीर के दाग चाहे मिट जाएँ पर मन की सलवटें कभी क्या खत्म हो पाएँगी?
हम सभी को सोचना है कि कमी कहाँ है ? यह एक बच्चे कि   बात नहीं यह पूरे सिस्टम का दोष है। इस भाग -दौड़ और पागल भौतिकवादी दौड़  में अंधे हम क्या खो रहे हैंक्या हमारे पास बढ़िया कपड़े हैंमोबाइल है,घूमना फिरनामॉल और पिक्चर सभी कुछ है पाने के चक्कर में हम क्या खो रहे हैं  कभी सोचा। सिर्फ एक बार उस बाल मन के दर्द और दबाव को सोचेगें तो भौतिकता की हर चीज कुरूप नजर आगी।  हमें क्या बदलना है ,ताकि इस प्रकार फिर कोई मासूम बचपन यूं ना जले।

हाइगा


हाइगा


Thursday, November 27, 2014

मन की बात- ऐसा क्‍यों?

कल शाम जब टेलीविजन चलाया ही था कि न्‍यूज आई कि फरीदाबाद के होली चाइल्‍ड स्‍कूल के एक तेरह साल के बच्‍चे ने जो आठंवी क्‍लास में पढ़ता था उसने स्‍कूल के बाथरूम में पैट्रोल डाल कर अपने को आग लगा ली। मन और सोच जैसे सून पड़ गए। ये क्‍या है? स्‍कूल में पानी की बोतल में पैट्रोल डाल कर ले गया । कसूर किस का है? मां बाप, टीचर, हमारा एजूकेश्‍न सिस्‍टम और समाज कौन है इस घटना का जिम्‍मेदार ? प्रश्‍नों का एक सैलाब हिला गया। हम बच्‍चों को क्‍या शिक्षा दे रहे हैं?आसान है एक दूसरे पर दोष मंडना । मां-बाप आसानी से टीचर को दोषी कह सकते हैं और टीचर के पास एक क्‍लास में तीस चालीस बच्‍चे होने का दर्द और हर बच्‍चे पर वन टू वन ध्‍यान ना दे पाने का कारण । क्‍या कारण होगा कि एक इतना छोटा बच्‍चा जिसने अभी जीना भी शुरू नहीं किया वो जीवन को खत्‍म करना चाहता है? वो कौन सा दबाव होगा जो उस इस हद तक सोचने को मजबूर करे? हमारे समाज में,हमारी शिक्षा प्रणाली क्‍या इतनी संकुचित हो चुकी है? क्‍या हम बच्‍चों को रोबोट बना रहे हैं? क्‍या नम्‍बर की दौड़ में अंधे हम जीवन को ली देने वाले गहरे काले गढ्ढे नहीं देख पा रहे हैं?मन बार बार उस बाल मन की स्थित की कल्‍पना नहीं कर पा रहा कि उसे खुद को इस प्रकार दर्द देकर उस दबाब से मुक्ति पाना चाहता था। मन का हर तार, पूर्णत: तार-तार हो रहा है। शायद उस बच्‍चे के मन की बात समझने की बात तो दूर है किसी ने उसे कभी सुना ही नहीं। वरना इतना छोटा बच्‍चा यूं सोच नहीं पाता। वो पैंतालीस प्रतिशत जल गया परन्‍तु अब खतरे से बाहर है पर क्‍या उसका शेष जीवन खिल सकेगा।? शरीर के दाग चाहे मिट जाएं पर मन की सलवटें कभी क्‍या खत्‍म हो पाएंगी?
हम सभी को सोचना है कि कमी कहां है ? यह एक बच्‍चे कि  बात़ नहीं यह पूरे सिस्‍टम दोष है। इस भाग दौड़ और मैड मैटिरिलिस्‍टिक रेस में अंधे हम क्‍या खो रहे हैं? क्‍या हम बढि़या कपड़े हैं, मोबाइल है ,घूमना फिरना, मॉल और पिक्‍चर सभी कुछ है पाने के चक्‍कर में हम क्‍या खो रहे हैं  कभी सोचा। सिर्फ एक बार उस बाल मन के दर्द और दबाव को सोचेगें तो भौतिकता की हर चीज कुरूप नजर आयेगी।  हमें क्‍या बदलना है? ताकि इस प्रकार फिर कोई मासूम बचपन यूं ना जले।
सीमा स्‍मृति 

Friday, September 19, 2014

वक्‍त

देखती तुम्‍हारी तस्‍वीर 
वक्‍त जादू 
वक्‍त पहेली
वक्‍त नशा
वक्‍त सजा
वक्‍त मेहरबानी
वक्‍त निशानी 
वक्‍त तकदीर 
वक्‍त तामीर 
वक्‍त फरीयाद 
वक्‍त यकीन 
वक्‍त धोखा 
वक्‍त को किसने रोका
तुमको यूं देखा
तो याद आया
वक्‍त ने इतना सिखाया
मुझे ना अजमा बन्‍दे
जिन्‍दगी भी वक्‍त की गुलाम 
ऐ जिन्‍दगी तुझसे पहले 
वक्‍त की हर लय को 
सलाम सलाम ।
सीमा स्‍मृति


Sunday, July 13, 2014

शब्‍द

मैं खोजती शब्‍द.........
घर के हर कोने में
दरवाजों के पीछे
बंद संदूकों में
आंगन में, चौबारे पर
परछती पर
पलंग के नीचे
अलमारी के पीछे
रोज यहीं तो छिपा करते थे
कहां गए शब्‍द.......
बंद आंखों से भी
खोज लिया करती थी मैं शब्‍द
खामोशी में भी चुन लिया करती थी
आज खोजती शब्‍द.........
वक्‍त खटखटाता रहा दरवाजा
मैं खोजती रही शब्‍द
तुम्‍हें मिले तो बताना
वो शब्‍द जो जोड़ते खुद को खुद ही से
वो शब्‍द जो सुनने को आतुर रहें हम सब
वो शब्‍द जो जोड़ते मन के तार
जिन्‍हें सुन बजे सितार
वो शब्‍द जिन में बनावट नहीं
वो शब्‍द जो देते मरहम
वो शब्‍द जो खामोश कहते समझते दिल की बात
हां वही सभी शब्‍द
मिले तो बताना ।
सीमा स्‍मृति

Sunday, June 8, 2014

मुस्‍कान


    1
 हवा से हल्‍की
 बचपन की साथी
 क्‍यों खो जाती।
        2
 कभी कटीली
 लिपटी चश्‍नी संग
 बदले रंग ।
     3
 आंखो से बोले
 राज दिल के खोले
 ये हौले-हौले।
    4
 सभी पढ़ते
 ये बेबस मुस्‍कान
 बन अन्‍जान।
      5
 करे हैरान
कभी ये परेशान
फीकी मुस्‍कान।
   6
पहाड़ी नदी
सी, बहती जाए
मिठू मुस्‍कान।
    7
तहों में करे
कैद, दिल के राज
ये भी अंदाज।
     8
ये जहरीली
करे दिल पे वार
यूं बार-बार।
    9
जूही की कली
महकाती आंगन
भोली मुस्‍कान।
10

कभी ये आये
कभी सिमट जाये
खोजी मुस्‍कान  ।


माटी


   1
कान्‍हा ने खाई
माई सृष्टि दिखाई
लीला रचाई।
    2
माटी से बने
मिलेंगे माटी ही में
क्‍यों हैं अन्‍जान ।
    3
माटी का मोल
जीवन अनमोल
योद्धा के बोल।
   4
ललाट लगी
माटी देश की शान
बढ़ाती मान।
    5
सौंधी ये गंध
करे बावला मन
देती जीवन।
    6
हो ये बावरी
क्‍यों बनी किरकिरी
जीवनदात्री।
    7
हैं खेले खेल
बचपन की साथी
अब ना भाती।
    8
रूप अनेक
ये कारी भूरी लाल
देती दुलार।


 28.05.2014

Wednesday, May 28, 2014

वक्‍त

1

वक़्त के आगे

चले ना चतुराई

समझो भाई।

 2

वक़्त सूरज

दिखाता है ये राह

ना घबराना ।

3

वक़्त के साथी

बदलें प्रतिपल

देखता चल।

4

वक़्त की छड़ी

करती ना आवाज़

गिराती गाज।

 5

समय-सिन्धु

अनंत असीमित

डूबे हैं लाखों।

 6

काल कोयल

मधुर गीत गाता

भाग्‍य -विधाता।

7

खामोश झील

समय का रहस्‍य

बढता जाए।

8

कर आगाज़

बन जा तू आवाज़

वक़्त हो साज।

   9

बन सारथी

ये चलाये जीवन

हो पहचान।

  10

ये सुख दुख

वक़्त के हैं गुलाम


ले तू मान।