Tuesday, April 19, 2016
यात्रा
1
भटके जीव
खोजे है ठंड़ी छाँव
जीवन गाँव।
2
मन पथिक
अनंत मरिचिका
फंसे मीन-सा ।
3
देती थकन
मन की अटकन
मिले न थाँव ।
4
ईश की याद
क्यूँ दर्द की
राह में
जले दीप-सी।
5
जली प्रेम लौ
भटकन की आँधी
क्यूँ, गई बुझा।
6
जीवन साँझ
मन जपे है राम
धुंधला धाम।
सीमा स्मृति
Saturday, April 9, 2016
क्षणिका
कुछ ऐसी,
तेरी आदत हो गई मुझे
ये कैसी इबादत
जो खुद से जुदा कर रही मुझे।
दिल की सरहद पे
लड़ती हूँ जंग,खुद से
हारती रहूँ खुद से
करती दुआ रब से।
ज़िंदगी का ये मोड़, कबूल मुझे
सफ़र होगा कितना लम्बा
अब नहीं फिक्र मुझे
हर लम्हें में मिल रहा सकून मुझे।
सीमा स्मृति
1
तुम करते हो मेरे लिए हूँ
जो तुम कर सकते हो
हमें तो तेरे संग अपना भी इल्म
नहीं...............
2
हम नासमझ नहीं
फिर क्यों?सुन
तेरे शब्द
समझ का हर तार सुन्न सा हो जाता
है..........
3
हम नहीं तेरे
हमसफ़र,ये नहीं थी तक़दीर
ये और बात है.........
ना कर सकें बात, तेरे
सफ़र मे
ये दिल को अब मंजूर नहीं।
4
साँझ का इंतजाार करती हूँ
तू हो सफ़र मे ये दुआ करती हूँ
हमसफ़र-दरिया के किनारों से होते हैं
ये एतबार रखती हूँ।
इक
बूँद नीर की तलाश
दे रही......
दरिया नीर का....
दोस्तों ना रहो अंजान
आने को है तूफान।
सीमा स्मृति
हथियार से ज़्यादा
छीन रही ज़िन्दगी
जीवन की रफ़्तार
रहो होशियार.........
सीमा स्मृति
Monday, March 21, 2016
1
बौद्धिकता के
ठेकेदार
क्या जाने
आम आदमी की ठोकरे
देते हैँ नारे
जलाते वक़्त की
धारणनाये
खुद को लगाते पँख
मिल सके उन्हें,उड़ान
दे उन्हें पहचान
नये ठेकेदार होने
की........
बेख़बर सभी
आदमी होने के लिये
पँख नहीं
जमीं की पकड़ जरूरी
है।
सीमा स्मृति
2
लगने लगे सीले-सीले
जो जिन्दगी के
सिलसिले
जान ले सख़ी
खुद ही से खुद के
सम्बन्ध
कहीं हो गये हैं
कड़वे -कटीले।
सीमा स्मृति
3
हमदर्द की तलाश
होती है ख़ास
खोजते हैं सभी दिन
रात
हो बेख़बर-
हमदर्द में भी है
दर्द
बस ये दर्द है तेरे
साथ
इस को बना ख़ास
यही देगा साथ
नये अहसास
नया विश्वास
नई आस
पूर्ण होगी तेरी तलाश।
सीमा स्मृति
4
कहते हैं लोग
हमें जिन्दगी में क्या मिला?
रख पलड़े में,
दूजी जिन्दगी
ग्रंथो
में खोजा
नाम ध्यान में खोजा
साधना में खोजा
प्रकृति में खोजा
उत्तर न मिला क्या है जिन्दगी
प्रश्नो के उत्तर में नहीं
इसी पल में है- जिन्दगी।
सीमा स्मृति
5
कमबख्त नींद भी, आज सहेली सी रूठी है
पलकों से भी नाता तोड़े बैठी है।
सीमा स्मृति
6
ख़ामोशी में जो न हो
दर्द और शिकायत की टीस
ऐसा कहाँ अपना नसीब??
सीमा
स्मृति
7
जब से खुद पर फ़िदा
होना सीख लिया
होंठ नहीं आँखे भी
मुस्कुराने लगी हैं।
8
जो
देखी अपनी ही तस्वीर
यूँ
लगा
अब
भी कोई सपना आँखे
सम्भाले
बैठी हैं।
9
होठों
से निकले बोल
चाशनी
से,सत्य की तहे दबा देते हैं
दिल से निकले बोल, बरखा से
सत्य
की मीठास किया करते हैं।
सीमा
स्मृति
10
रिश्तों
की उलझनें
बॉलटिंग
पेपर सी
सोख
लेती है
एक
ही पल में जिन्दगी की मीठास ।
सीमा
स्मृति
11
मत
किया करो
वक़्त
से कोई सवाल
उत्तर
के इंतज़ार में
अक्सर
जिन्दगी की लय बिगाड़ देता है।
सीमा
स्मृति
12
अंतराष्ट्रीय महिला दिवस
आज
बलत्कार
कर
जलाई
गई
बेइज्जत
की गई
घर
से निकाली गई
अजन्मी
मिटाई गई
पिट
पिट मारी गई
कल
अंतराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की सुर्ख़ियो मे दबी
कल
की ख़बर आज दिखाई गई।
सीमा
स्मृति
13
बनावट
की तहें इतनी मोटी हो गई कि
अहसास
की खुरपी,
खुन्दी हो
टूटने
की कगार पर है।
Friday, January 22, 2016
पिटारी यादों वाली
आज याद कि पिटारी में से एक याद का मोती आप सब के लिए निकल आया। शायद से बात सन्
उन्नीसों बहतर की है मैं मात्र केवल नौ वर्ष की थी। मुझे टेलीविजन देखने का बहुत
शौक था। बहुत ही शौक था। मैं उस समय की
बात कर रही हूँ जब टेलीविजन के शुरूवाती दिन थे। पूरे मोहल्ले में एक ही घर पर
एनटिना दिखाई देता था। मुझे टेलीविजन देखने की
इतनी रूचि थी कि मैं अपने मोहल्ले
की लाइट ना होने पर कभी कभी दूसरे मोहल्ले के घर में टेलीविजन देखने चली जाती थी
। कोई कोई टेलीविजन वाला घर तो इतवार को फिल्म आने वाले दिन, पचीस पैसे टिकट लगा देता था मुझे याद है, हमारे सामने
वाले घर में टेलीविजन वाली आँटी की बेटी से मेरी दोस्ती थी । हम दोनों हमेशा घर–घर, स्टापू,गिट्टे रस्सा कूदना,पिठू-गर्म
जाने क्या क्या खेल साथ साथ खेलते थे।
एक दिन रंजना से मेरी लड़ाई हो गई। शायद बात
मम्मियों तक पहुँच गई। ओहो वो दिन था
इतवार । फिल्म आने का दिन, मैं उन के गेट पर अन्दर जाने को
खड़ी थी । तभी उसकी मम्मी दनदनाती हुई निकल कर आई और बोली कि खबरदार जो घर में
घुसी, तेरी एक टांग तो खराब है, लगड़ी
है, दूसरी भी तोड़ दूँगी(मेरी टांगो में पोलियो है)और मुझे
वहाँ से भागा दिया । मैं उनकी लगड़ी बात
से ज्यादा दुखी नहीं हुई अपितु फिल्म ना
देख पाने के दुख के कारण रो रही थी ।
मेरे पिता जी ने मुझे बहुत समझाने कि कोशिश की पर मेरा वो दुख तो फिल्म ना देख पाना था । मैं रोते रोते सो गई।
अगले दिन उदास मन से स्कूल चली गई। मुझे याद है स्कूल में पढ़ाई में दिल नहीं लग
रहा था बल्कि मैं रंजना से पुन: दोस्ती करने के उपाय सोच रही थी। दोपहर को जब मैं
घर आई तो मेरी खुशी का टिकाना नहीं रहा । मेरे पिता जी हमारे लिए वेस्टन कम्पनी
का एक नया टेलीविजन ले आये थे । मम्मी ने बताया कि पापा ने कल साथ वाली आँटी ने
जो मुझे टांग तोड़ने वाली बात कही थी,
वो सुन ली थी । थोड़े दिनों बात मैं देखा कि पापा शाम को घर
देर से आने लगे । मैं कई बार पापा के आने का इंतजार करते करते सो जाने लगी और कभी सुबह
देखती कि पापा का गला खराब है वो अक्सर गगारे कर रहे होते थे ।मैंने मम्मी से पूछा कि पापा आजकल इतनी देर से क्यों
आते हैं तो मम्मी ने बताया कि हमारे पास इतने रूपये नहीं थे कि टेलीविजन खरीद
सकें।उन्होने अपने दोस्त से उधार लिया है। ये टेलीविजन बहुत मंहगा है। चार हजार
रूपये का है इसलिए तेरे पापा अपने स्कूल के बाद तीन जगह टयूश्न पढ़ाने जाते हैं। ताकि हम उधार चुका सकें। आज भी मेरे जहन में टेलीविजन का वो मूल्य जो रोज सुबह पापा के गगारो
के रूप में सुनाई देता था याद है । आज हमारे घर में चार टेलीविजन हैं और पापा बहुत
शौक से दिन भर अपने कमरे में टेलीविजन देखते रहते हैं..........................
मिश्री सी मीठी
निबौरी सी –कड़वी
अनंत यादें। सीमा स्मृतिचाँद - चाँदनी
1
ये चाँद मियाँ
ले बेगम चाँदनी
गाते रागिनी ।
2
चाँदनी ओढ़े
वधू-झील शर्माती
दिल लुभाती।
3
चाँद के आते
इतराती चकोर
मचाती शोर ।
4
सिन्दूरी शाम
रोज करे सलाम
चाँद दरोगा।
5
यूँ चाँद बाबा
रोज रमाये धूनी
नभ/ भये रूहानी।
6
लो आया चाँद
ले तारों के खिलौने
रात सजाने।
7
साँझ ढलते
बाँसुरी मन गाता
नव वन्दना ।
23.01.2016
Sunday, January 17, 2016
प्रश्न
1
चहकी बया,
चौंका शिकारी,अब
तेरी है बारी ?
2
रोज रावण
रूप बदल सताते
आये न राम ?
3
वो आवाज थी
जादुई सी,क्योंकर
चुभे तीर-सी ?
4
धर्मो के नाम
सवालों का सैलाब
करे प्रहार ?
5
जख्मी समाज
क्यों न उठे सुनामी
प्रश्न बेमानी ?
6
भीड़ का हिस्सा
दर्द का एहसास
ये अर्ध सत्य ?
7
घायल पंछी
जहरीले ये तीर
क्यों चारों ओर ?
8
ये शर्मसार
मानवता,धिक्कारे
कब जागोगे ?
9
Monday, January 11, 2016
Wednesday, January 6, 2016
मीठी खुशबू
1
वक़्त ने खोली
अनुभव पिटारी
मिली ख़ुशबू।
2
शिशु ख़ुशबू
चहकती आँगना
गाती तराने।
3
स्वर्ग-नर्क ?
ईमानदार लम्हा
जीवन अर्क।
4
साँसों में बसे
जिन्दगी की मिठास
सत्य जो साथ।
5
मन बगिया
मीठी-सी खुशबू ले
रही इठला।
6
यूँ मिली दिशा
धुली गई मिठास
शक्ति विश्वास।
सीमा स्मृति
मुलाकात
तुझसे मिलना
इक रवायत नहीं
किसी उम्र का
महकता सुरूर भी नहीं
बदली हवाओं में
थमा सा कोई नशा भी नहीं ।
तुझ से मिलना
जिन्दगी में मिले छालों को,
अपने ही हाथों से मरहम लगाना -सा
दर्पण में अक्स की पहचान सा
रात के बाद दिन से मुलाकात -सा
यथार्थ के टुकडों को सँजोना -सा
अतीत में थमे एहसास सा लगता है मुझे ।
इक रवायत नहीं
किसी उम्र का
महकता सुरूर भी नहीं
बदली हवाओं में
थमा सा कोई नशा भी नहीं ।
तुझ से मिलना
जिन्दगी में मिले छालों को,
अपने ही हाथों से मरहम लगाना -सा
दर्पण में अक्स की पहचान सा
रात के बाद दिन से मुलाकात -सा
यथार्थ के टुकडों को सँजोना -सा
अतीत में थमे एहसास सा लगता है मुझे ।
भोर
1
भोर का शोर
यूँ घोलता मिठास
झूमे आकाश।
2
भोर का रंग
दे उम्मीदों के पंख
भरो उड़ान ।
3
यूँ गई साँझ
सूरज को दे काज
लाये उजास ।
4
ख़ामोश भोर
लिये मीठी मुस्कान
हरे थकान।
5
भोर सहेली
तुम नहीं अकेली
थमो हथेली।
6
झाँकती भोर
लगी गुनगुनाने
मीठे तराने।
7
खोजती आँखें
करती इंतजार
भोर त्यौहार ।
8
भोर -आँगना
सजा नया सपना
होगा अपना ।
9
कहे ये भोर
हों मज़बूत स्तम्भ
न करें दंभ।
10
कहती भोर
भौंरे सी खोज रही
आस का फूल।
11
नन्हें शिशु-से
है लगे मचलने
नये सपने।
अपनी गंध
आज फिर
बटोरे मैंने, अपनी तन्हाई के टुकड़े
जोड़े,
दिया इक रूप
दी धूप अपने होने की
सर्दी में बॉलकनी में पड़े लिहाफ़ सी
गंध कुछ कम सी हुई
बस जाती है जो ज़िन्दगी में
भीड़ में जीते जीते-तन्हा इन टुकड़ों में।
सीमा स्मृति
बटोरे मैंने, अपनी तन्हाई के टुकड़े
जोड़े,
दिया इक रूप
दी धूप अपने होने की
सर्दी में बॉलकनी में पड़े लिहाफ़ सी
गंध कुछ कम सी हुई
बस जाती है जो ज़िन्दगी में
भीड़ में जीते जीते-तन्हा इन टुकड़ों में।
सीमा स्मृति
परिवर्तन
आज सुबह
रास्ता बदल कर देखा
कुछ नये मोड़ लिए
हाँ!
कुछ भूल हुईं
कुछ दर्द मिले
कुछ भटकन मिली
कुछ नये संघर्ष
कुछ नये आकर्षण
एक नयी पहचान
कुछ खोया
कुछ पाया
कुछ नये अहसास
रास्ते और आदतें
प्रायः सी लगी
हाँ
बदले रास्ते और आदतें
जीवन खुशगवार कर दिया करती हैं।
सीमा स्मृति
सीमा स्मृति
सवाल
जिन्दगी में कुछ रिश्ते देते हैं
मुस्कान!
पहचान!
विश्वाश!
आत्मविश्वास!
नये अहसास!
तुजरबा!
और कुछ देते हैं-
हीनता!
थकान!
करते हैरान-परेशान
छिन लेते चैन!
करते बेचैन!
छींन लेते मुस्कान!
जिन्दगी ने किया सवाल
क्या दिया तुमने
बस रखो -यही ख्याल ।
बूझो
कौन है -वो
शांत
बर्फ गिरने के बाद घाटी -सी
मासूम
सर्दी की भोर -सी
चंचल
पहली बरसात के बाद नदी-सी
ख़ामोश
झील की तह-सी
मीठी
झरने की पहली-धारा सी
दुखी
फटी धरती की दरारों- सी
परेशान
छाँव को तरसते-भटकते राहगीर-सी
हाँ
वो जिन्दगी ही है
आईने सी खुद पे मुस्करा रही।
सीमा स्मृति
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