Friday, January 31, 2014

स्‍त्री : एक परिभाषा


कोख में मरना,
जरूरी नहीं है पढ़ना,
घर के सभी काम करना,
प्‍यार से घबराना,
हर कदम डर जाना,
रोना, पर सिसकियाँ ना भरना।

दहेज की आग में जलायी जाओ,
सामूहिक बलत्‍कार में मारी जाओ,
एसिड से नहलाई जाओ,
हर यातना सहना,
आह कभी ना भरना,
स्‍त्री तेरी एक परिभाषा
तिल तिल कर मरना
और

एक पुरूष को जन्‍म देना।

Tuesday, January 28, 2014

प्रेम और प्ररेणा


पुराना है विषय
नये हैं संदर्भ
किसी प्ररेणा के गर्भ  में 
ही पलता होगा प्रेम। 

आज हर चौराहे 
मैट्रो,बस,ट्रेन में
प्रेम का इजहार मिलता है।
प्ररेणा भटकती है
दर दर पुकारती
संस्‍कृति पर ये एसिड का हमला
कब तलक चलेगा
कला, संस्‍कृति, कृति को  
कब तक यूँ ही जलना पड़ेगा। 

पश्चिम में खोजते अपनी पहचान
क्‍या पूर्व में अब सूर्य ढलेगा ??
प्रेम और प्ररेणा का
अद्भुत,  गूढ़, गहन रहस्‍य 
ग्रंथो व काव्‍य ग्रंथो में भी 
नहीं मिलेगा । 
सीमा स्‍मृति

सुख : दुख

              
राशि हैलो तुझे पता है कि अनिल के फादर की क्रिया आज है। दस दिन बात उसके बेटे की शादी है। इंदु ने कहा।
नहीं मुझे नहीं मालूम
अच्‍छा, चल मैं आ रही हूँ तू मुझे मैट्रो स्‍टेशन के पास मिलना ।तीन से चार बजे की क्रिया है1 मैनें तो बॉस से शॉट लीव ली है। तू भी पहुंच, फिर मिलते हैं तीन बजे । इंदु ने कहा।
मैं शायद नहीं आ पाऊँगी।
अरे, नहीं डियर आ जा तुझे पता है, आजकल अनिल कितना इंफ्लुएंशियल आदमी हो गया है। वहां उसके पिता जी की क्रिया में जनरल मैनेजर, प्रबंध निदेशक और सारे टॉप बॉस आयेगें। सब से मिलने का इससे बड़ा ओकेजन नहीं मिलेगा।
 इंदु और राशि क्रिया पर गई और चार बजे फ्री हो गई।
चल इंदु मेरे घर चलते हैं, यहां से मेरा घर बहुत पास है। राशि ने कहा ।
नहीं यार घर चलती हूँ, रोज तो सात, साढ़े सात से पहले घर नहीं पहुंच पाती हूँ । आज मुझे घर पर जल्‍दी देख पिंकी बहुत खुश हो जाएगी । ऐसे आफिस से जल्‍दी घर आने के मौके रोज रोज कहां मिलते हैं। 

सीमा स्‍मृति

Sunday, January 19, 2014

प्रश्‍न

सोचती हुँ कभी कभी
हादसो से भरी इस दुनिया में 
फूलों का खिलना 
सूरज का चमकना
पंछियों का चहचहाना
बच्‍चों का मुस्‍कराना
बदलों का गड़गड़ाना
नदियों का छन-छनाना
ना होती ये सुरलहरियों
तो जिन्‍दगी  कैसी होती?






आईना

जिन्‍दगी में क्‍या हुआ अच्छा,
हुआ क्‍या बुरा-घटनाओं से मत आंको
वक्‍त के आईनें में- जिन्‍दगी सब दिखा देगी।

उत्‍सव

क्षणिक  मुलाकात भी बन जाती है-उत्‍सव
तारिखों में सिमटे हो उत्‍सव -ये जरूरी नहीं।

परिभाषा

बड़े घर की परिभाषा बदल गई
कमरे हैं बहुत
एक ही कमरे सभी करते थे
हँसी-ठिठोली, वो निकल गई। 

खामोशी

मुश्किल है समझना
खामोशी, जो
कहीं हथियार 
कहीं अहम् की तलवार
कहीं बेबसी
कहीं प्‍यार
कहीं एतबार
कहीं सफलता
कहीं असफलता
कहीं पुल बन जाती है।
झीनीं है परत इसकी
छूते ही छुई मुई बन जाती है।
काश समझ पाती खामोशी
जो आज भी मुझे प्रतिदिन
दर्द की नयी टीस दे जाती है।
सीमा स्‍मृति

16.01.2014

Thursday, January 16, 2014

धुंध

क्‍या मुसीबत है, ये स्‍कूल वाले तो सर्दियों की  छुटियाँ आगे ही बढ़ाते जा रहे हैं। अब तो इतनी सर्दी भी नहीं है पहले अच्‍छे भले पन्‍द्र्ह तारिख को  स्‍कूल खुलने वाले थे और अब बीस तारिख को खुलेंगे। बस थोड़ी धुंध है। स्‍कूल टीचरस के तो मजें हैं। सारी मुसीबत तो हम मम्मियों की है। सारा रूटीन डिस्‍ट्रर्ब हो गया। ये बच्‍चे ना टाइम से सोते हैं, ना उठते हैं। मेरा तो सारा सिस्‍टम ही बिगड़ गया है। रश्मि शायद अपनी सहेली को फोन पर बोल रही थी।
रश्मि के एक्‍सप्रेशन को देख कर लग रहा था कि वह भी शायद रश्मि के विचारों से सहमत है।
ना, मैं योगा पर जा पाती हूँ। मेरी किटी भी इन आफतों के कारण मिस हो गई। पूरा दिन इन के साथ खटते रहो। रश्मि स्‍कूल वालों के प्रति नाराजगी प्रकट करती रही।
तभी न्‍यूज आई कि नोएडा के आर्मी पब्लिक स्‍कूल की बस धुंध के कारण डम्‍पर से टकरा गई । सभी बच्‍चों को चोट आई है और दो बच्‍चे गंभीर रूप से घायल हैं। जिन में से एक की टांग और एक का हाथ काटना पड़ा। मैं असमंज में था कि रश्मि को यह न्‍यूज बताऊ या वह खुद देख लेगी ।
सीमा स्‍मृति

16.01.2014


चेंज

                                चेंज-1
अरे वाह! नीतू इस पिक में तो तुम बहुत सुन्‍दर लग रही हो, कौन सी जगह है ?” मैंने  पिक्‍स देखते हुए नीतू से पूछा।
अरे ! मासी ये पिक आन दा वे टू वृंदावन है और ये ग्रेटर नोयडा एक्‍सप्रेस हाईवे की है। क्‍या मस्‍त टूर था। स्‍टीरियो फुल्ल वॉल्यूम में चलाया और मस्‍ती करते हुए गए। नीतू बोली ।
तुम लोग, लास्‍ट मंथ  भी तो गए थे । फिर दुबारा वृंदावन । मैंने आश्‍चर्य से पूछा।
चिल मासी, चेंज बहुत जरूरी है। वृंदावन का रास्‍ता बहुत अच्‍छा है। दिल्ली से पास भी है और मंदिर भी हो आते हैं। मम्‍मी भी खुश। नीतू ने कहा।
                                          चेंज-2
भोला को फोन किया तुमने कब से गीजर खराब है। सर्दियां आने वाली हैं। फिर तुम लोग ही परेशान होगे। मैंने सुधा से कहा।
जी, किया था । पर वो तो फोन ही नहीं उठता है। आजकल तो इन लोगों के नखारे भी बहुत हो गए हैं। सुधा ने अजीब सा एक्स्प्रेश्न देते हुए कहा।
मैं अभी घर से निकला ही था कि भोला मिल गया।
अरे! यार भोला घर का गीजर तो ठीक कर दो तुम्‍हारी भाभी बहुत परेशान हो रही हैं। मैंने कहा।
आज तो मुश्किल है। भाईसाहब अब तो एक महीने बात ही हो पायेगा ।
क्‍यों, क्‍या हुआ ? कोई खास कारण है मैंने आश्‍चर्य से पूछा।
भाई साहब आप भूल गए। मैं हर साल कावड ले कर, एक महीने के लिए हरिद्वार जाता हूँ।
हां, मैं भूल गया। यार तुम तो बड़े भगत  इंसान हो। पैदल जाते हो, वो भी इतनी दूर।
हां अच्‍छा लगता है जाना । सारी टेंश्‍न घर परिवार की चिक चिक से दूर । दोस्‍तों के साथ एक चेंज भी हो जाता है।

सीमा स्‍मृति
16.01.2014



Monday, January 13, 2014

नव वर्ष


ये नया साल
दे खुशियाँ हजार
 नयी बहार
हों न रास्‍ते
यूँ ही बढ़ता जा
हाइकु परिवार ।

लाटरी

वो सर्दी की सुबह थी। मैं रूटीन की तरह बैंक के लिए निकली थी। ये रूटीन भी क्‍या कमाल की चीज है। कभी कभी तो लगता है कि लोगों की मुस्‍कराहट, हँसी सभी कुछ रूटीन सा हो गया है। इसी रूटीन का हिस्‍सा है हर रेड लाइट पर मिलने वाले चेहरे गाडियां और यहां तक की भिखारी।
आज शनिवार था। पहली ही रेड लाइट पर वो छोटे-छोटे बच्‍चे अपनी तेल का बल्‍टी नुमा बर्तन लिए घूम रहे थे। लिजिए हो गई रेड लाइट। बजाने लगे कार के शीशे । एक भिखारी तो बहुत इंट्रेस्टिंग था। पहले वो हमेशा धीरे धीरे कार का शीश बजाता है। जैसे कि कोई साज बजा रहा हो। यदि भीख मिल गई तो खुशी चेहरे और आखिरी बार बजाये गये शीशे से व्‍यक्‍त हो जाती है। यदि भीख नहीं मिली तो चौथी बार बजाये गए शीशे से उसे भीख न दिये जाने पर गुस्‍से  से भरी आवाज आती है।
 मैंने कार के साइड वाले शीशे से देखा कि वो छोटा वाला बच्‍चा पीछे से भागता हुआ आ रहा है। उसे भागता देख बाकी दोनों बच्‍चे भी उसके साथ भागने लगे। मेरे मन की उत्‍सुकता बड़ी गई कि आखिर बात क्‍या है। मैं नजरे उन्‍हीं पर रखी हुई थी।  सड़क के दूसरी ओर एक आदमी खड़ा था । तभी उस छोटे से लड़के ने वो दस का नोट उसे पकड़ा दिया । अभी भी उस छोटे से बच्‍चे के चेहरे की चमक मेरी आंखों में बसी है, यूं की उसकी लाटरी लग गई हो। वो मुस्‍कराहट कमाल थी । काश उसे कैमरे में भी कैद कर पाती ।

हर चेहरा एक लाटरी चाहता है । 
14.01.2014

Thursday, January 9, 2014

सो स्‍वीट.........


हम बहुत देर से ट्रैफिक जाम में फसे थे। एक घँटे  से ज्‍यादा हो गया था मगर कार एक इंच भी आगे नहीं बढ़ी थी । तभी मेरी नजर सड़क के किनारे एक बच्‍ची पर पड़ी, वो मिट्टी में खेल रही थी । साथ ही में उसकी एक छोटी सी बाल्‍टी सी रखी थी। शायद वो उसके भीख मांगने का बर्तन था। आस-पास और बच्‍चे भीख मांग रहे थे।
लड़की बहुत सुन्‍दर थी और मुझे उस से भी ज्‍यादा तो उसकी वो छोटी छोटी शरारतें लग रही थी कि मैं अपना ध्‍यान उससे हटा नहीं पा रही थी। कभी वो सूरज को अपनी अंगुलियों के झरोंकों से देखती, तो कभी सड़क के किनारे लगे फूल को सूँघती और उसके चेहरे एक मीठी सी मुस्‍कान सिमट जाती। फिर उसी फूल पर हाथ फेरती जैसे कोई मां अपने बच्‍चे को सहला रही हो।
कार में मेरे साथ मम्‍मी भी थी। मम्‍मी देखो कितनी प्‍यारी,कितनी स्‍वीट ! कितनी लवली बच्‍ची है। मैं मम्‍मी को दिखाने लगी। मम्‍मी ने अनमने मन से देखा और पापा से बात करने लगी।
इतने मैंने देखा कि वो एक छोटी सी डंडी ले कर जैसे कुछ लिखने की कोश्शि कर रही थी। अरे वाह उसने लिखा। मै मंत्रमुग्‍ध सी उसे देख रही थी।
तभी मैंने देखा कि एक औरत गुस्‍से तमतमाती हुई आई और उस स्‍वीट सी बच्‍ची को मारने लगी और कुछ बोल भी रही थी। फिर उसका बर्तन उसे पकड़ाने लगी।
ओह!वो जरूर उसे भीख मांगने को कह रही थी। तभी वो औरत उस बच्‍ची का हाथ जोर से पकड़ हमारी कार के करीब आ रही थी और वो बच्‍ची जोर जोर से रो रही थी।
मैंने अपनी कार का शीशा नीचे किया और उसे बोली, “क्‍यों मार रही हो आप कितनी प्‍यारी और स्‍वीट बच्‍ची है।
तभी वो औरत चिल्‍ला कर और उस बच्‍ची को मेरे शीशे की ओर धकलेती हुई बोली,“,तू ले जा बहुत प्‍यारी लाग रही है तैने।
मम्‍मी ने गुस्‍से से मेरी ओर देखा और जल्‍दी से कार का शीशा बन्‍द किया और कार चल पड़ी।
सीमा स्‍मृति

09.01.2014 

Wednesday, January 8, 2014

दीपमालिका

1
सुनो दस्‍तक
बदला है मौसम
आई दिवाली
2
दीपों की थाली
आशाओं से सजाई
बांटो मिठाई
 3
पथ के साथी !
हो शुभ दीपावली
मिले  बधाई
4
दीपों की माला
चारो ओर उजाला
हो मतवाला
5 
उत्सव रानी
अनेकों हैं कहानी
नयी पुरानी ।
6 
रूप की रानी
अमावस की रात
आयी बारात । 
 7 
दीपों की लड़ी
बनी शुभकामनाएँ
सभी सजाएँ । 
 8
तम भगाते
पलकें झपकाते
टिमटिमाते। 
9
शुभ दीवाली
कहते झूम-झूम
धड़ाम धूम । 
10
रंगोली द्वार
करे हैं इंतजार
देवी पधारे। 
11
आस का दीप
किया है प्रज्वलित
हो धन वर्षा।







धूप

 
धूप- किरन
बन नव जीवन
आई आँगना ।
2.
धरा -ओढ़नी
पहन सातों रंग
है पिया संग।
3.
हुई पगली
बादल की सहेली
करे शैतानी ।
4 .
सर्दी की रानी
तुझ बिन बेमानी
दुपहरिया।
5.
शूल सी चुभे
है तेरी परछाई
ये भी सच्‍चाई।
6.
काटे अँधेरा
ये बिन हथियार
है होशियार ।
7.
है तेरे बिना
हर जीवन सूना
ओ सुनयना।
8.
तेरा ये आना
पंछी चहचहाना
सुरीला गाना ।





खुशियों के मोती के

1
नयी सुबह
भरती नये रंग
सहेजो संग। 

ये जीवन के रंग

1 
बदले रंग 
जीवन सतरंगी 
ये पगडण्डी । 
   2 
साँसो की लय 
थिर मन मयूर 
 दे नये रंग। 
3 
शब्‍द गुलाल 
भावों की पिचकारी 
हाइकु डारी। 
4 
बरसे रंग 
जिन्‍दगी का कैन्‍वस 
बदले पल। 
5 
छींटे नहीं, ये 
रंग थे,सतरंगी 
ओढ़े ज़िन्‍दगी।

झूमें ज़िन्दगी


1
फूल बनके
खिली, जूही की कली
महकी फिज़ा ।
2
झोंका हवा का
छू कर, यूँ गया कि
झूमें ज़िन्दगी ।
3
पड़े फुहार
घिर आए हैं   मेघ
गूँजे मल्‍हार ।
4
लहरों संग
बजे है नई धुन
दूर किनारा ।
5
किरनों संग
उम्मीद की रोशनी
जीवन-धारा ।
6
हर शाख यूँ
दमके चाँदनी में
हुई चाँद -सी ।

वसन्त

1
प्रसन्न मन
प्रफुल्लित है तन,
आया वसन्त। 
2
मन के तार
बिना साज के राग  
छाया वसन्त 
3
महके फूल
तितली चूमे होंठ
भँवरे गाएँ। 
4
धुन बजती 
थिरकते कदम

झूमे है धरा 

नव वर्ष-2014

1
कुछ खट्टा ये
कुछ मीठा बीता है
गया वर्ष रे। 
2
हर्षित मन
नई उम्‍मीदों -संग
भरेगा रंग। 
3
नव संकल्‍प
सूर्य-किरन लाई
धरा मुस्‍काई। 
4
ये जाता पल
कहे- मुस्‍कराओ
नए वर्ष में। 
5
मिली दिशाएँ
चलते चले जाएँ
रुकना नहीं । 
6
आज अँधेरा
कल नया सवेरा
आए-मुस्काए । 
 7
सुनो दस्‍तक
चाहे परिवर्तन
वर्ष- नूतन। 
8.
करो स्‍वीकार
हाइकु परिवार

मेरी बधाई।

कांपी धरती

1
कांपी धरती
पिघला आसमान
मूक इंसान। 
2
टूटा घरौंदा
बिखरा है सामान
कैसी पहचान। 
3
रौंदी धरती
भूले हैं परिणाम
अब हैरान। 
4
वीरान बस्‍ती
सहमी है धरती
ये है प्रगति। 
5
गीत भूल
मीलों तक खमोशी
सुनाती दास्ताँ।











युगों युगों से

1
दुख बादल
सुख उड़ता पंछी
यात्रा अनंत। 
2
युगों युगों से
ढूढ़ता मुसाफिर
कहॉं मंजिल। 
3
दुखी रहना
प्रवृत्ति है मन की
ना हो आवृत्ति। 
4
दुःख में अश्‍क
बहें या थम जाएं
कोई बताये। 
5
शब्‍दों की गूंज
खामोशी में दफन
करती प्रश्‍न। 
6
रचना कृति
जीवन तरंग से
कैसे है रीति! 
7
जीवन ताल
बजाता खड़ताल
मन विशाल। 
8
रंग ही रंग‍
बिखेरे अंग संग
मनतरंग।
9
पीली सरसों
हरे भरे खेतों में
मूक कोयल।
10
ये एहसास
खिली खिली सी धूप
सुखद जाल।

उनींदी आँखें


1
भावों का रेला
किसने क्‍या-क्या ठेला
वक्‍त ने कहा।
2
गीत -संगीत
बजाते गए मीत
नयी दिशा में।
3
उनींदी आँखें
देखना चाहती हैं
खिली-सी धूप।
4
थामें हाथों में
प्रज्‍वलित मशाल
सोच कमाल।

5
खाली मैदान
गूँजती खामोशियाँ

सुनो कहानी।

पूर्णता की ओर


1
तन की नहीं,
मन की शक्ति के ही
ये हैं पुजारी।
2
दया न माँगे,
न सहानुभूति हीं,
दे दो दुलार।

3
मुस्‍कराते वो
ले संघर्ष-मशाल
मंजिल पार।

4
लब खामोश
सफर तन्‍हा सही
जीतेगें जंग।

5
नहीं बजती
कानों में कोई धुन
बोलती आँखे।
6
रोशनी दूर
हौंसले हैं बुंलद
मंजिल पास।
7
अस्फुट शब्‍द
कह डालते बात
भावों के भरी।
8
विकट स्थिति
लाँघते चले जाते
आशा के संग।
9
संघर्ष-ताल
थामे आशा का हाथ
थिरकते वो।
10
मुस्‍कराहट
समेटे होठों पर,
प्रेरणा स्रोत।

11
सोच है ऊँची
पहाड़ों-से इरादे
ये बेमिसाल।

12
स्‍वीकृति नहीं
समाज की आँखों में,

बाँटते प्‍यार।

भ्रष्टाचार

1
देखो आईना
करो सवाल, क्‍यों है
ये भ्रष्टाचार। 
2
शब्‍दों से नहीं
पाटी जाए बीमारी
ये लाइलाज। 
3
वायरस ये
करे जड़ें खोखली
ध्‍वस्‍त समाज। 
4
ये दलदल
खींचे है पल पल
बढ़ता जाए।
5 
कोलगेट के
हजारों खुले गेट
गिनती भूले।


ममता


1
यशोदा कहो,
या पुकारो देवकी
इक रूप -सी ।

2
है कभी ढाल,
कभी तलवार
उर विशाल ।

3
ममताछाँव
है शीतल चाँदनी
भरे है घाव।

4
भूख की आग
झुलसती ममता
बेचती कोख।

5
इंसान ही क्‍या
जानवर भी जाने
ये मूक बोली।







जिन्‍दगी की बातें

1
बीती ये,उम्र
इस इंतजार में
मिलेगा प्‍यार।
2
क्‍यों प्रतिपल,
अनहोनी का डर
है उम्र भर।
3
वो मनमीत
अधूरे बने गीत
कैसा संगीत।
4
खामोशी बनी
जहर बुझा तीर
शब्‍द कहानी।
5
ओढ़ी बेरुखी
नाम दे मजबूरी
यही जिन्‍दगी।
 6
यादें पहेली
बनी कब सहेली
पूछे बावरी।

7
बादल आए
उम्‍मीद-डोर संग

ताके धरती।

Sunday, January 5, 2014

कल्‍पना या यथार्थ


उडेल सको अपनी थ‍कान,मुस्कान
 
चिढ़ और गुस्‍सा
 
चिल्‍लाया जा सके
 
झल्‍लाया जा सके
 शब्‍द बोझ न हो
 
जहाँ सोच पर बंधन न हो
 
दर्द को दर्द की ही तरह बाँटा जा सके
 
खुशी को जिया जा सके
 
प्रश्‍नों के तीर न हों
 
डर न हो रिश्‍ते की टूटन का
 
भय न हो खो देने का
 
छूट हो कुछ भी कहने की-
मन में जो भी धमक दे 
 
जहाँ लम्‍हें शर्तो पर न जिए जाएँ
 
माँगे हो
न पूरी होने पर, अनजाना डर न हो
आदर सम्‍मान केवल शब्‍दों की चाशनी में लिपटे न हों,
रिश्‍ता बन सके ,आईना जिन्‍दगी का
पाना चाहता है हर शख़्स यह खूबसूरत रिश्‍ता
दे पाना, यह खूबसूरती
आज भी है, प्रश्‍नों की सलीब पर ।
सहज साहित्‍य पर प्रकाशित मेरी कविता