Thursday, December 26, 2013

सर्दी

        1
    संवेदना-सी
  जमी, सर्दी की शामें
  ढूंढती आंच ।
           2
     खोजते,इक
  टुकड़ा आशियाना
  सर्दी का आना।
           3
    रैन-बसेरा
  ये ना मेरा,ना तेरा
  हुआ सवेरा।
           4
    सर्दी के दिन
  वो कुनकुनी धूप
  मिला खजाना।
              5
     इक टुकड़ा
  धूप अमृत लगे
  खोजें निगाहें।
             6
     शीत लहर
  पांच मरे-खोजें हैं
  अर्थ सर्दी के।
            7
    दुबके पंछी
  ठिठुरते इंसान
  करे बयान।
          8
    जम सी गई
 खोजती लकडि़यां
 वो दो निगाहें।
सीमा स्‍मृति


Friday, December 6, 2013

ये हुआ

नमकीन सी हो गई तेरी खामोशी
क्‍या मुझ से हुई  कोई गुस्‍ताखी ।
06.12.2013

दूरियाँ

 दूरियाँ  वक्‍त की कमी से नहीं
शहरों के अंतराल से नहीं
एहसास की सरहद में आंकी जाती है।
06.12.2013

बदलाव

पहले----
तेरी खामोशी प्‍यार के इकरार का शोर मचाती थी
अब-----
खामोशी में लिपटा तेरा अहं हर बार नया जख्‍म दिया करता है।
06.12.2013

सांसे

कहते हैं
मिली हैं सांसे सभी को गिनती भर
खेलते खेल इन्‍हीं सांसो पर
सुख :दुख के झूले पर
वक्‍त के हिंडोले पर
कितने आये  और चले गए
नहीं आई गिनती
समझ ना आई ये गिनती ।
05.12.2013

Thursday, December 5, 2013

लाइव

नोचे गए रिश्‍तों
भाई भाई
बहन- भाई
गुरू- शिष्‍य
जनता नेता
पत्रकार-पत्रकारिता
पति-पत्‍नी
हर सामाजिक रिश्‍ते की लगती है,नुमाइश
रोज रात नौ बजे
बैडरूम, ड्राइंग रूम,दुकानों और चौराहों पर
लटके टी.वी के हर चैनल पर
बहस के दौर चलते हैं-----लाइव
ना  जाने  कहां  गई  लाइफ
कार्यक्रम की रेटिंग का सवाल है
कौन सोचे कहां गई लाइफ
कहां गई मेरे दोस्‍त, लाइफ

सीमा स्‍मृति
२७.११.२०१३



Saturday, November 30, 2013

रिटायरमेंट


   1
पचास पार
पनपे ये इंतजार
क्‍या होगा यार।
   2
धूप आंगना
होगा अब आराम
आया विराम ।
   3
वो घड़ी आई
संधर्ष ले बिदाई
देगा बधाई।
    4
प्रश्‍न कटीले
पूर्णता-अपूर्णता
चैन ले जाते ।
    5
ये टिक टिक
होगी दर्द की टीस..
सुख की सांस....?
     6
सहमे क्षण
लगे हैं मुस्‍कराने
हो सुनहरे ।
     7
आई पेंशन
नया एक्‍सटेंशन
नहीं टेंशन।


बिटिया

   1
माँ ! माई! मम्‍मी
बिटिया पुकारती
मैं इठलाती ।
   2
है घर द्वार
बजती शहनाई
ये रानी आई। 
    3
तेरे आने से
मिली मुझे उड़ान
ये पहचान।
    4
ये चिरइया
यूँ ना काटो, पर
जीने दो पल ।
   5
गर्वित हुआ
घर द्वार जो भया
जन्‍म तुम्‍हार।



आंखे

खामोश बोलें
   ये राज हर खोलें
   बोलती आंखें ।
2 नैनों की भाषा
  है अजब पहेली
  बूझ सहेली ।
3 दर्द से भरी
  आंसुओं को हैं,थामे
  क्‍यों मुस्‍कराती ।
4 चपल नैना
  सुनाये है, कहानी
  मुंह जुबानी ।
5 मृग नैना
  छीनें मन का चैना
  ये दिन रैना ।
6 बन आईना
  करती ये बयान
  हर दर्शन।
7 नैन पिंजरा
  मन, मोहक पंछी
  करे सवाल ।
8 ये अंग संग
  हैं, जीवन तरंग
  देखो ये, रंग।


     

Wednesday, November 27, 2013

यूँ हुआ

माना  तेरी थी मजबूरियाँ
क्‍या किस्‍मत है
टकराना था उनको
मेरी ही  मोहब्‍बत के साथ ।
२७.११.२०१३

अपनापन

सुना करते थे
ओैरों
की बेवफाई के किस्‍से
खुद पर जो गुजरी
कोई क्‍या सुनता
अपने ही अश्‍क साथ छोड़ गए।
२७.११.२०१३

उस पार

कल तेरी आँखों में नींद नहीं थी
आज मेरी से है,गायब
दो किनारे ही अक्‍सर,जीते हैं
इक ही हकीकत ।
२७.११.२०१३


Tuesday, November 26, 2013

इलाज

क्‍या हुआ सर, आप आज आफिस के लिए लेट कैसे हो गए ?
अरे मैडम क्‍या बताये, आप तो जानती हो घर में हम सभी नौकरी करते हैं। ऐसे में नौकर भी पालना पड़ता है। बस उसी नौकर को बुखार हो गया। उसे डाक्‍टर के पास ले कर गया था इसी कारण लेट हो गया। उसे वापिस ऐजेंसी वालों के पास भी तो नहीं भेज सकते वरना पता नहीं वापिस आये या नहीं।
हां सर, ये तो है।
अब डाक्‍टर ने उसे ढेंगू बताया है। खून टेस्‍ट करवाया, प्लटेलेट थोड़े कम आये हैं।
सर कितने हैं ?
यही तीस हजार।
सर, ये तो बहुत कम हैं ।
मैडम, हम उसको दवाई के साथ ताजा जूस, दूध सब दे रहे हैं। ऐजेंसी वाले क्‍या ख्‍याल रखते जो हम रख रहे हैं। ठीक हो जाएगा । उस के बिना हमारा भी तो गुजारा नहीं हो सकता।  कुछ नहीं होगा। तीन चार दिन का  टाइम तो लगेगा पर ठीक हो जाएगा। मैनें  अखबार में पढ़ा था कि इस बार दिल्‍ली में ढ़ेगू से  मरने वालों की संख्‍या बहुत ही कम है।

सीमा स्‍मृति
30.10.2013


है टूटा एतबार

1
ये चारो ओर 
अहम् का गुबार
बनावट आधार
नोंचेखसौटे
मानवता व प्या
है टूटा एतबार।
2
कैसा माहौल
हर ओर घोटाला
प्यार दफना डाला
कैसे संस्का
स्लों को मिटा डाला
जहर घोल  डाला

त्रिवेणी में प्रकाशित सदोका

Tuesday, November 19, 2013

ये कैसा सच

सब कुछ बदलते देख लिया
रिश्‍ते-नाते  
लोग- व्‍यवाहर
वक्‍त- प्‍यार
रहन-सहन
आचार विचार
शरीर - आयु 
आधार -संस्‍कार
बस नहीं, बदली तो----------
सिर्फ तेरी याद,   सिर्फ तेरी याद।

Sunday, November 17, 2013

आशा

        1
टिमटिमता
आशा-दीप,कहे
यही जिन्‍दगी।
     2
होगा सवेरा
रोज कहे अंधेरा
हो चक्र पूरा।
     3
दिखाई राह
तुम साथ निभाना
भूल न जाना।
    4
नयी हैं राहें
कठिन है डगर
 चलते जाना।
    5
 मेरी खामोशी
टूट के बिखरेगी
किरिचे बन।
     6
पेट में रोटी
तन पर लंगोटी
वक्‍त कसौटी।
     7
तन्‍हा सफर
मंजिल भी है दूर
रूक ना जाना।
   8
बहता दर्द
रगो में,बिखरेगा
बन मुस्‍कान ।
     9
मेरी उड़ान
ले नयी पहचान
छू ले आसमां।
    10
बेरूखी तेरी
टूटेगी इक दिन
है इंतजार ।


सीमा स्‍मृति

Wednesday, November 13, 2013

सफर

लिखी जा सकती है
एक लम्‍बी कविता
बन्‍दर और मगरमच्‍छ की कहानी का
कापी राइट लेकर
मीठी, सुन्‍दर गहन----- कविता
मैं तो केवल एहसासों को 
करती रही शब्‍दबद्ध
भ्रम ही सही
लगा क्‍या ये कविता है
खोजती अस्तित्‍व 
संघर्षरत जिन्‍दगी
जीती लम्‍हें 
पिरोती शब्‍द
ये भी नहीं जानती ..... क्‍या है कविता
अपने ही पिरोये शब्‍द 
अंकित कर 
जीने लगी जिन्‍दगी 
लगा रास्‍ता आसान ना सही
मंजिल भी नहीं 
फिर भी जीया जा स‍कता है अकेले
चलने लगी 
पिरोती एहसास अपने साथ ।





सत्‍य

जंगल की आग की तरह
तेरी याद
मेरे अस्तित्‍व को झुलसाती है
बीते वक्‍त का, हर लम्‍हा
कैटालिस्‍ट बन
मेरे वर्तमान की जड़े, झुलसाने लगा ।


Tuesday, November 12, 2013

‘यादें’


1

कहीं तस्वीर

कहीं दिल में कैद

यादें दीवानी।

2

सरकंडों -सी

चुभे,कभी फाहा हो

सोखती दर्द 

3

याद बादल

नहीं,जो आए जाए

थिर सूरज।

4

चुने जो फूल

अँजुरी भर लाई

हुए ये शूल।

5

सर्द शाम की

तन्हाई में सिमटी

खोजें बिछौना।

6

साँसों -सी चले

ये अंग -संग मग्न

बदले रूप।

7

ये ठिठकती

सिकुड़ी पपड़ी -सी

है कसकती। 

8

फूल -सी खिली

सिमटी महक -सी

अस्तित्व संग।

9

मिश्री -सी मीठी

निबौरी सी- कड़वी

अनंत यादें।

10

शब्दों की सीमा

पाट नहीं पाती ये 

यादों की नदी।

बादल

1 ये मनचला
  ले धूप का आंचल
  उड़ता चला ।

2 बिजली रानी
  है, इसकी दीवानी
  दोस्‍ती पुरानी ।

3 बड़ा शैतान
  बनता है नादान
  ये महेमान ।

4 बादल बन
  ये उदासी के साये
  मन पे छाये।

5 झोली भर ये
  अमृत बरसाये
  जो मन आये।

6 रूदाली बना
  कभी तेरा गर्जन
  कभी मल्‍हार ।

7 बरसे मेघा
  रिमझिम रे मेघा
  मोहक मेघा ।

8  मेघ दीवाना
   रहता है मस्‍ताना
   बनें अन्‍जाना । 

9  देख झलक
   झूमे, मन मयूर
   हुआ बांवरा ।
10 ये नटखट
   आये, बिन आहट
   कि अटाहस ।

11 देख इसे, ये
   चिरिया की सहेली
   कि अटखेली ।

12 रोद्ध रूप ले
   बना कलि अवतार
   है,भूला प्‍यार ।


 03.02.2013



Friday, November 8, 2013

मुस्‍कान


मुस्‍कान बिखरी रहती है
कुछ इस कद्र उन लबों पर
यूं कि गमे नशा हो 
अब भी सरूर पर।

वो क्‍या जानें

         कहते हैं वो
  जख्‍म मिलते हैं भर जाने को
  अश्‍क बहते हैं गम को भुलाने को 
  ये क्‍या जाने जख्‍म देने वाले 
  सूख जाया करते हैं अश्‍क 
  जख्‍म के नासूर हो जाने पर।

‘ इजाजत’

  उन बेबस खामोश निगाहों में
  उतर आया था शून्‍य
  सिमट गया था हर एहसास
  बिखर कर रह गई थी जिन्‍दगी
  बस इक इजाजत की गूँज में । 

बीता वक्‍त

जब भी तेरी तस्‍वीर,तस्‍वुर में आती है
जिन्‍दगी पे एतबार की हर कड़ी बिखर जाती है। 

Thursday, November 7, 2013

‘मूक’

स्‍पर्श केवल,
अंघकार की जबान नहीं,
यह भाषा है,
प्रत्‍येक जीवन की
भट्टी के अंगारो की तरह उकेरा है
हर स्‍पर्श से पूर्व जिन्‍दगी ने ।

याद

याद कोई बादल नहीं,
जो आये और चली जाये
ये तो वो
थिर सूरज है
जो चमकता है
 क्षण प्रति क्षण 

प्रश्‍न

जो अर्थ जिन्‍दगी को
हम देना चाहते हैं
अर्थ स्‍वंय जो पाती है जिन्‍दगी
इसी कशमकश में
अक्‍सर निकल जाती है जिन्‍दगी

Wednesday, November 6, 2013

तेरी याद

तेरे कहने से, मैंनें  दिया
इक रूप अपने एहसासों को
बांध कर तेरी याद मुट्ठी में
उड़ा रही हूँ, तेरी दी खुशबु ।

कपड़े

ऐस्‍सी कार के रंगीन शीशों से
झांकती दो आंखे,
फेर लेती हैं मुहँ
चिलचिलाती धूप में,
देख अर्धनग्‍न लड़की को मांगते भीख ।
छी वट कंट्री ? ?  कैसे मांगते है ?
कम से कम कपड़े पहनकर तो मांगे ।

ड्राइवर जल्‍दी चलो
होटल पहुंचने में देर हो रही है
वो फ्रांस की पार्टी निकल जाएगी…….
ये टेंडर भी हाथ से निकल गया तो
कैसे लगा पाएंगे............

हम एक्‍सपोर्ट गारमेंट की फैक्‍टरी ।

Wednesday, October 30, 2013

ओस सा अस्तित्‍व

ओस की बूंद-सा अस्तित्‍व
सूर्य किरण में सिमटता
चन्‍द्र किरण से खिलता
ये अस्तित्‍व के धरातल पर
ओस-सा अस्तित्‍व
      चाहा बहुत
ना सूर्य का अपनतत्‍व मिला
ना ही चन्‍द्र से जुड़ा कोई नाता
ओस का संधर्ष है निरन्‍तर
पर क्षणिक है जीवन से नाता।

Monday, October 28, 2013

निज अस्तित्‍व


परिस्थितियों की कठपुतली आवाज देती है
जब कभी  निज अस्तित्‍व की
केवल प्रतिघ्‍वनित होकर रह जाती है वो
चारो ओर फैले अहम् के गुबार में
ये जानते हुए  निश्चित है रह शक्‍स की जीवनधारा,
किसी अनिश्चित्‍ता की डोर से
नहीं टूट पाता एक चक्रव्‍यूह
धिर जाती है धारा इक नये व्‍यूह में
कहां मिलेगा अस्तित्‍व का धरातल
अन्‍जान है इससे फिर भी
डाल वो कवच संघर्षो का 
उतर पडती है अनुभूति की गहराई में 
यथार्थ की तपन में झुलसने लगा कवच 
धुटकर कर रह जाती है वो आवाज 
उस गुबार में 
जिसमें धिरा  उलझा  जूझता 

हर व्‍यक्तित्‍व तलाशता है निज अस्तित्‍व।

Saturday, October 26, 2013

पैबंद

कब तलग जोड़ते, 
सहेजते रहोगे
वो पैबंद, जो लगाये थे तुमनें
मेरी जिन्‍दगी में प्‍यार के नाम पर ।
तुम जीते रहे जिन्‍दगी,
कैद मैं चंद दीवारों में
अतीत के साये में
रूप पैबंद को देती रही तुम्‍हारे अनुरूप ।

तुमने सम्‍बन्‍धों के एहसास
जीए जिन्‍दगी के नाम पर
तुम मेरे हो, इस एहसास में
स्‍वंय से क्‍या है, 
मेरा सम्‍बन्‍ध जी ना सकी मैं
बात सिर्फ एक दशक की नहीं
लम्‍हा लम्‍हा जोड़ते पैबंद का दर्द
जीया है मैंने प्‍यार के नाम पर ।

Thursday, October 24, 2013

रेखा

जिन्‍दगी की किताब के
पृष्‍ठ बदलते रहे
उन पर अंकित
गहरी काली रेखाएँ
कुछ अमिट
तनिक सिमट कहती रही
कहानी जिन्‍दगी की।
सुना तो था
या
किया अनसुना याद नहीं
हाँ
एक एहसास कहानी पूरी होने का
रेखाओं में सिमट
छूने लगा संवेदना के तार
गहराने लगी रेखाऍं
किस्‍मत की स्‍याही से
पृष्‍ठ भरने को थे
तभी
रेखाएँ भ्रम दे कालिमा का
कहने लगी
अधूरे कोरे पृष्‍ठों के सहारे भी
किताबे पूरी हुआ करती है 
रेखाओं के अंकित होने तक ।