Monday, January 26, 2015

“खोज”


मिश्री से मीठे,
निबोरी से कड़वे,
कैक्‍टस से कटीले,
फाहे से सोखते दर्द,
रेत से सरकते,
दलदल से खींचते,
दिन से उजले,
अमावस्‍या की रात से घनेरे,
गोंद से लिजलिजे,
हवा से हल्‍के,
एहसास से बहते,
खुली चोट से विभत्‍स,
हैवानियत से क्रूर,
प्रकृति से मोहक,
आसमान से विस्‍तृत,
धरा से रहस्‍यमय,
सागर से गहरे,
वक्‍त से अनिश्चित,
फूलों से कोमल
मानवीय रिश्‍तों के ये अनूठे रंग-रूप
बिखरे जीवन के अदभुत कैन्‍वस पर
करते कभी हैरान कभी परेशान
कभी करते जीवन को आसान
कभी करें बेचैन
कभी छीन लेते चैन
रिश्‍ते
प्रश्‍नों की सलीब---खोजते अर्थ।

सीमा स्‍मृति 

फीकी मुस्‍कान


फीकी सी धूप
ठीक, उस फीकी सी मुस्‍कान सी
जो सिमट जाती है माँ के चेहरे पर
करती बेस्‍ट ऑफ लक
जवान बेटे को,हर रोज नया इन्‍टरव्‍यूह
देने जाते वक्‍त ।
वो फीकी मुस्‍कान---
शादी के इश्तिहारों में खोजती
बेटी का भविष्‍य ।
वो फीकी मुस्‍कान---
रिटायर पति को देती दिलासा
देख बैंक पास बुक का बैलेंस ।
जिन्‍दगी जीने की
नसीहतें!उपाय,!आइडिया!
टेलीविजन के चैनलों पर देख
सिमट जाती है वही फीकी मुस्‍कान
काश जिन्‍दगी होती इतनी ही आसान ।


सीमा स्‍मृति 

Thursday, January 22, 2015

साथ

यूँ तो अपनी परछाई भी
छोड़ देती है साथ, बिना रोशनी के
कौन रहता है, हर लम्‍हा किसी के साथ,
खोजती मैं, जिन्‍दगी हर लम्‍हें के साथ,
रहते हम साथ नहीं
साथ उम्र भर का नहीं,
वादा भी कोई किया नहीं
बस-जीना चाहती हूँ
छोटा-सा साथ
दे पूर्णता का एहसास ।


सीमा स्‍मृति 

साथ

साथ वादों से नहीं
इरादों से बना करते हैं
इरादे विश्‍वास में झलका करते हैं
दोस्‍तों  
विश्‍वास किया नहीं जाता
दिया जाता है।

सीमा स्‍मृति 

पतक्षर


Monday, January 5, 2015

जीवन

देखे हैं तेरी खुशी में,
तितलियों के पंखों से रंग ।
सुनी है मैंने तेरी खुशी में,
भँवरों की गुनगुन
मैं जानने लगी हूँ
अस्तित्‍व के धरातल पर
तू संधर्ष की लहरों से
टकराता प्रतिपल
मुस्‍कराता और कहता
दोस्‍त-
यही जीवन
यही जीवन।


सीमा स्‍मृति