कुछ ऐसी,
तेरी आदत हो गई मुझे
ये कैसी इबादत
जो खुद से जुदा कर रही मुझे।
दिल की सरहद पे
लड़ती हूँ जंग,खुद से
हारती रहूँ खुद से
करती दुआ रब से।
ज़िंदगी का ये मोड़, कबूल मुझे
सफ़र होगा कितना लम्बा
अब नहीं फिक्र मुझे
हर लम्हें में मिल रहा सकून मुझे।
सीमा स्मृति
1
तुम करते हो मेरे लिए हूँ
जो तुम कर सकते हो
हमें तो तेरे संग अपना भी इल्म
नहीं...............
2
हम नासमझ नहीं
फिर क्यों?सुन
तेरे शब्द
समझ का हर तार सुन्न सा हो जाता
है..........
3
हम नहीं तेरे
हमसफ़र,ये नहीं थी तक़दीर
ये और बात है.........
ना कर सकें बात, तेरे
सफ़र मे
ये दिल को अब मंजूर नहीं।
4
साँझ का इंतजाार करती हूँ
तू हो सफ़र मे ये दुआ करती हूँ
हमसफ़र-दरिया के किनारों से होते हैं
ये एतबार रखती हूँ।
इक
बूँद नीर की तलाश
दे रही......
दरिया नीर का....
दोस्तों ना रहो अंजान
आने को है तूफान।
सीमा स्मृति
हथियार से ज़्यादा
छीन रही ज़िन्दगी
जीवन की रफ़्तार
रहो होशियार.........
सीमा स्मृति
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 16 अप्रैल 2016 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!