Sunday, February 13, 2011

युग

यूज एंड थरो की संस्‍कृति 
प्रयोग करो और फेंक दो
डिब्‍बे, इंसान या भावनाएं
इन्‍हें साथ लेकर चलना आसान है
उससे भी ज्‍यादा आसान है फेंक देना
जितना चाहो प्रयोग करो 
प्रयोग करने की नियामावली तुम्‍हारी अपनी है ,
एक इंसानी बम से उड़ सकते हैं 
हजारो इंसानो के चिथड़े
डिब्‍बों की तो की क्‍या बिसात है।
भावानाएं उनका क्‍या
जिन्‍दगी बदलती है
बदलती हैं जरूरतें
मंत्र एक है, वर्तमान में जियो
फिर कुछ भी बदलो या फेंको
भावानाए क्‍या चीज हैं
ये संस्‍‍कृति है इकसवीं सदी की
रूको मत बढते जाओ
चाहे बहाने पड़े , मगरमच्‍छ के आंसू
प्रयोग करो 
डिस्‍पोजेबल रूमाल और फेंक दो,
मुस्‍कराओ और बढ़ते चलो
यूज एंड थरो की संस्‍कृति

सीमा स्‍मृति

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