Saturday, February 19, 2011

लघुकथा

भविष्‍य

उस दिन आफिस में मुहरम की छुटी थी । सर्दी के मौसम में सूरज देवता की
पूरी मेहरबानी होने का मतलब है , कुछ मुंगफलियों हों, रेवडी गुड, खुला
आसमान और थोडी सी मौज मस्‍ती । सोचा बच्‍चों को इंडिया गेट लेकर जाया
जाए। वहां की खुली धूप में पि‍कनिक ही कर ली जाए। खाने और खेलने का सामान
बंधा , कार निकाली चले पडे ।
कार में बच्‍चे बात कर रहे थे बुआ इंडिया गेट के पास ही तो
राष्‍ट्रपति भवन है ना। मैने कहा , ‘हां चलते चलते मैंने कार
राष्‍ट्रपति भवन की और मोड ली। मैं बच्‍चों को आस पास नजर आ रही सभी
इमारतों के विषय के बारे में बता रही थी।
तभी मेरा भतीजा, संसद भवन की आ‍ेर इशारा कर के बोला , बुआ वो क्‍या है?
बेटा, वो संसद भवन है।

संसद भवन क्‍या होता है? सनी बोला ।

बेटा हमारे देश का सारा काम काज इसी संसद भवन से होता है। हमारे द्वारा
चुने गए सभी नेता यही से देश का भविष्‍य निश्चित करते है।
अरे अरे बुआ , क्‍या यही वो जगह है, जहां वो सभी एक दूसरे को कुर्सी
मारते हैं, खूब हंगामा करते हैं, जो टी वी में भी आता है । मैने देखा था
क्‍या लडाई होती है। सनी, तुम भी देखना खूब मजा आता है कोई किसी की बात
नहीं सुनता है । एक आंटी चुप करने को कहती रहती है,और कोई चुप नहीं करता
है, पिंकी ने कहा।

बुआ चलो, बुआ चलो चल कर देखते है लडाई ।क्‍या लडाई अभी भी हो रही होगी, सनी ने कहा ।

मैं इंडिया गेट की तरफ गाडी मोंड चुकी थी और पिंकी द्वारा संसद की इस
पहचान पर स्‍तब्‍ध थी ।

सीमा स्‍मृति

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