1
एक सत्य
बेल से लिपटे
सर्प-सा
मन की देहरी –पे
सरसराने लगा
लम्बी खामोशी
गूंजती रही फुंकार
कुछ सर्प-
बिल नहीं खोजा करते।
2
स्मृतियों के बीच
दुबका मन
कब तक जियेगा
दूब के अन्दर
पल रहे पेड़ होने का
भ्रम ।
3
खामोश हो गई, हवा
इस डर से
आदतें भी अजीब हुआ
करती हैं
साँस लेने को
जि़न्दगी समझने की
आदत।
4
जीया दर्द
खोजती रही खिड़कियाँ
क्यों रही अनजान
दरवाजे की अहमियत
से।
5
वो तूफान था
हवा समझ
जीया जो भ्रम
पल भर
झोंका वो
नयनों में नमी
ताउम्र की दे गया।
6
मिलती है हँसी
शर्तो पे
मुस्कान के लिए
इक आइना ही काफी है
।
सीमा स्मृति
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