1
वक्त की धार
बन कटार
शब्दों के टुकड़े करती रही
स्याही क्या लिखेगी
हाइकु कहानी कविता
एहसास के पन्नों पे
हर स्याही रंग बदलती रही ।
2
परत दर परत
दीवार पे पेन्ट चढ़े से -ये रिश्ते
बदले मौसम में
झर जाते हैं
पपड़ी बन -बन।
3
अंदर का मैं -----शब्द जाल बना सिर्फ
मिमियता है
लोग इसे जीवन कहते हैं।
4
अभी कुछ कर्ज बाकि होंगे सॉंंसों के
वरना--
लबों की हँसी
यूँ टुकड़ों में ना मिलती
वक्त की धार
बन कटार
शब्दों के टुकड़े करती रही
स्याही क्या लिखेगी
हाइकु कहानी कविता
एहसास के पन्नों पे
हर स्याही रंग बदलती रही ।
2
परत दर परत
दीवार पे पेन्ट चढ़े से -ये रिश्ते
बदले मौसम में
झर जाते हैं
पपड़ी बन -बन।
3
अंदर का मैं -----शब्द जाल बना सिर्फ
मिमियता है
लोग इसे जीवन कहते हैं।
4
अभी कुछ कर्ज बाकि होंगे सॉंंसों के
वरना--
लबों की हँसी
यूँ टुकड़ों में ना मिलती
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