Sunday, October 11, 2015

विविध

     1
वक्‍त की धार
बन कटार
शब्‍दों के टुकड़े करती रही
स्‍याही क्‍या लिखेगी 
हाइकु कहानी कविता
एहसास के पन्‍नों पे
हर स्‍याही रंग बदलती रही ।

2
परत दर परत 
दीवार पे पेन्‍ट चढ़े से -ये रिश्‍ते
बदले मौसम में
झर जाते हैं 
पपड़ी  बन -बन। 

3
अंदर का मैं -----शब्‍द जाल बना सिर्फ
मिमियता है
लोग इसे जीवन कहते हैं।  

4
अभी कुछ कर्ज बाकि होंगे  सॉंंसों के
वरना--
लबों की हँसी 
यूँ टुकड़ों में ना मिलती 

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.