भटकन की रेत पे
जलते हैं पाँव
कितनी भी तलाशो
मिलती नहीं छाँंव ।
बिना पानी का ये दलदल
छीन लेता है चैन हर पल ।
जिन्दगी भूल जाती है
गाना, गुनगुनाना
मुस्कराना
अपनी ही ताल पे थिरन जाना
किस्मत की दुहाई से
बढ़ी भटकन
कर्म की मशाल से
छटी है भटकन।
सीमा स्मृति
जलते हैं पाँव
कितनी भी तलाशो
मिलती नहीं छाँंव ।
बिना पानी का ये दलदल
छीन लेता है चैन हर पल ।
जिन्दगी भूल जाती है
गाना, गुनगुनाना
मुस्कराना
अपनी ही ताल पे थिरन जाना
किस्मत की दुहाई से
बढ़ी भटकन
कर्म की मशाल से
छटी है भटकन।
सीमा स्मृति
कर्म करते चलो... संदेशप्रद रचना के लिए बधाई.
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