Wednesday, November 13, 2013

सफर

लिखी जा सकती है
एक लम्‍बी कविता
बन्‍दर और मगरमच्‍छ की कहानी का
कापी राइट लेकर
मीठी, सुन्‍दर गहन----- कविता
मैं तो केवल एहसासों को 
करती रही शब्‍दबद्ध
भ्रम ही सही
लगा क्‍या ये कविता है
खोजती अस्तित्‍व 
संघर्षरत जिन्‍दगी
जीती लम्‍हें 
पिरोती शब्‍द
ये भी नहीं जानती ..... क्‍या है कविता
अपने ही पिरोये शब्‍द 
अंकित कर 
जीने लगी जिन्‍दगी 
लगा रास्‍ता आसान ना सही
मंजिल भी नहीं 
फिर भी जीया जा स‍कता है अकेले
चलने लगी 
पिरोती एहसास अपने साथ ।





4 comments:

  1. बहुत सुन्दर भाव, अहसासों को शब्द देना ही तो है कविता ..

    ReplyDelete
  2. "ये भी नहीं जानती ..... क्‍या है कविता.." अपने एहसासों को.. शब्दों मे लयबद्ध पिरोना ही तो कविता है और आप इस प्रयास मे बहुत सफल हैं

    ReplyDelete
  3. "ये भी नहीं जानती ..... क्‍या है कविता.." अपने एहसासों को.. शब्दों मे लयबद्ध पिरोना ही तो कविता है और आप इस प्रयास मे बहुत सफल हैं

    ReplyDelete
  4. "ये भी नहीं जानती ..... क्‍या है कविता.." अपने एहसासों को.. शब्दों मे लयबद्ध पिरोना ही तो कविता है और आप इस प्रयास मे बहुत सफल हैं

    ReplyDelete

Note: Only a member of this blog may post a comment.