Wednesday, January 8, 2014

कांपी धरती

1
कांपी धरती
पिघला आसमान
मूक इंसान। 
2
टूटा घरौंदा
बिखरा है सामान
कैसी पहचान। 
3
रौंदी धरती
भूले हैं परिणाम
अब हैरान। 
4
वीरान बस्‍ती
सहमी है धरती
ये है प्रगति। 
5
गीत भूल
मीलों तक खमोशी
सुनाती दास्ताँ।











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