Tuesday, January 28, 2014

प्रेम और प्ररेणा


पुराना है विषय
नये हैं संदर्भ
किसी प्ररेणा के गर्भ  में 
ही पलता होगा प्रेम। 

आज हर चौराहे 
मैट्रो,बस,ट्रेन में
प्रेम का इजहार मिलता है।
प्ररेणा भटकती है
दर दर पुकारती
संस्‍कृति पर ये एसिड का हमला
कब तलक चलेगा
कला, संस्‍कृति, कृति को  
कब तक यूँ ही जलना पड़ेगा। 

पश्चिम में खोजते अपनी पहचान
क्‍या पूर्व में अब सूर्य ढलेगा ??
प्रेम और प्ररेणा का
अद्भुत,  गूढ़, गहन रहस्‍य 
ग्रंथो व काव्‍य ग्रंथो में भी 
नहीं मिलेगा । 
सीमा स्‍मृति

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