Wednesday, January 8, 2014

पूर्णता की ओर


1
तन की नहीं,
मन की शक्ति के ही
ये हैं पुजारी।
2
दया न माँगे,
न सहानुभूति हीं,
दे दो दुलार।

3
मुस्‍कराते वो
ले संघर्ष-मशाल
मंजिल पार।

4
लब खामोश
सफर तन्‍हा सही
जीतेगें जंग।

5
नहीं बजती
कानों में कोई धुन
बोलती आँखे।
6
रोशनी दूर
हौंसले हैं बुंलद
मंजिल पास।
7
अस्फुट शब्‍द
कह डालते बात
भावों के भरी।
8
विकट स्थिति
लाँघते चले जाते
आशा के संग।
9
संघर्ष-ताल
थामे आशा का हाथ
थिरकते वो।
10
मुस्‍कराहट
समेटे होठों पर,
प्रेरणा स्रोत।

11
सोच है ऊँची
पहाड़ों-से इरादे
ये बेमिसाल।

12
स्‍वीकृति नहीं
समाज की आँखों में,

बाँटते प्‍यार।

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