Monday, January 13, 2014

लाटरी

वो सर्दी की सुबह थी। मैं रूटीन की तरह बैंक के लिए निकली थी। ये रूटीन भी क्‍या कमाल की चीज है। कभी कभी तो लगता है कि लोगों की मुस्‍कराहट, हँसी सभी कुछ रूटीन सा हो गया है। इसी रूटीन का हिस्‍सा है हर रेड लाइट पर मिलने वाले चेहरे गाडियां और यहां तक की भिखारी।
आज शनिवार था। पहली ही रेड लाइट पर वो छोटे-छोटे बच्‍चे अपनी तेल का बल्‍टी नुमा बर्तन लिए घूम रहे थे। लिजिए हो गई रेड लाइट। बजाने लगे कार के शीशे । एक भिखारी तो बहुत इंट्रेस्टिंग था। पहले वो हमेशा धीरे धीरे कार का शीश बजाता है। जैसे कि कोई साज बजा रहा हो। यदि भीख मिल गई तो खुशी चेहरे और आखिरी बार बजाये गये शीशे से व्‍यक्‍त हो जाती है। यदि भीख नहीं मिली तो चौथी बार बजाये गए शीशे से उसे भीख न दिये जाने पर गुस्‍से  से भरी आवाज आती है।
 मैंने कार के साइड वाले शीशे से देखा कि वो छोटा वाला बच्‍चा पीछे से भागता हुआ आ रहा है। उसे भागता देख बाकी दोनों बच्‍चे भी उसके साथ भागने लगे। मेरे मन की उत्‍सुकता बड़ी गई कि आखिर बात क्‍या है। मैं नजरे उन्‍हीं पर रखी हुई थी।  सड़क के दूसरी ओर एक आदमी खड़ा था । तभी उस छोटे से लड़के ने वो दस का नोट उसे पकड़ा दिया । अभी भी उस छोटे से बच्‍चे के चेहरे की चमक मेरी आंखों में बसी है, यूं की उसकी लाटरी लग गई हो। वो मुस्‍कराहट कमाल थी । काश उसे कैमरे में भी कैद कर पाती ।

हर चेहरा एक लाटरी चाहता है । 
14.01.2014

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