Wednesday, October 30, 2013

ओस सा अस्तित्‍व

ओस की बूंद-सा अस्तित्‍व
सूर्य किरण में सिमटता
चन्‍द्र किरण से खिलता
ये अस्तित्‍व के धरातल पर
ओस-सा अस्तित्‍व
      चाहा बहुत
ना सूर्य का अपनतत्‍व मिला
ना ही चन्‍द्र से जुड़ा कोई नाता
ओस का संधर्ष है निरन्‍तर
पर क्षणिक है जीवन से नाता।

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