कब तलग जोड़ते,
सहेजते रहोगे
सहेजते रहोगे
वो पैबंद, जो लगाये
थे तुमनें
मेरी जिन्दगी में
प्यार के नाम पर ।
तुम जीते रहे जिन्दगी,
कैद मैं चंद दीवारों में
अतीत के साये में
रूप पैबंद को देती
रही तुम्हारे अनुरूप ।
तुमने सम्बन्धों के एहसास
जीए जिन्दगी के
नाम पर
तुम मेरे हो, इस
एहसास में
स्वंय से क्या
है,
मेरा सम्बन्ध जी ना सकी मैं
बात सिर्फ एक दशक
की नहीं
लम्हा लम्हा
जोड़ते पैबंद का दर्द
जीया है मैंने प्यार
के नाम पर ।
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