जिन्दगी की किताब के
पृष्ठ बदलते रहे
उन पर अंकित
गहरी काली रेखाएँ
कुछ अमिट
तनिक सिमट कहती रही
कहानी जिन्दगी की।
सुना तो था
या
किया अनसुना याद नहीं
हाँ
एक एहसास कहानी पूरी होने का
रेखाओं में सिमट
छूने लगा संवेदना के तार
गहराने लगी रेखाऍं
किस्मत की स्याही से
पृष्ठ भरने को थे
तभी
रेखाएँ भ्रम दे कालिमा का
कहने लगी
अधूरे कोरे पृष्ठों के सहारे भी
किताबे पूरी हुआ करती है
‘रेखाओं’ के अंकित होने तक ।
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