Thursday, October 24, 2013

रेखा

जिन्‍दगी की किताब के
पृष्‍ठ बदलते रहे
उन पर अंकित
गहरी काली रेखाएँ
कुछ अमिट
तनिक सिमट कहती रही
कहानी जिन्‍दगी की।
सुना तो था
या
किया अनसुना याद नहीं
हाँ
एक एहसास कहानी पूरी होने का
रेखाओं में सिमट
छूने लगा संवेदना के तार
गहराने लगी रेखाऍं
किस्‍मत की स्‍याही से
पृष्‍ठ भरने को थे
तभी
रेखाएँ भ्रम दे कालिमा का
कहने लगी
अधूरे कोरे पृष्‍ठों के सहारे भी
किताबे पूरी हुआ करती है 
रेखाओं के अंकित होने तक । 

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