जिन्दगी करती है सवाल मुझसे
क्या है गम
और
है क्या खुशी ?
अतल सागर में
तलाशता है क्यों कोई निधि
प्रश्न लहरो से उठते हैं निगाहों में
छू कर किनारा
कभी शांत श्वेत मेघ से
लौट जाते हैं
और
कभी तोड़ डालना चाहते हैं किनारा ।
कठोर वक्त बन,
सोचती हूँ उत्तर दूँ या नहीं
सोचती हूँ उत्तर दूँ या नहीं
खुशी और गम की
कोई सीमा नहीं
हर बदलते क्षण में
ये बंध जाते हैं
प्रश्न करने से पूर्व
और
उत्तर की प्रतीक्षा में
संवेदना के ये ‘साथी’
रंग बदल जाते हैं।
25 04 90
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