तुमने कहा
आज
अजीब बासीपन,
रूकी हुई,
जीवनवहीन सी,
अब है तुम्हारी जिन्दगी,
अजीब अलास सा आता बोलने में
तुम से भी अब,
हैरान थी मैं ,ये तुम से सुनना पड़ेगा
उदास हूँ,
माली,
मैं
वही पौध हूँ जिसे बड़े प्यार से लगाया था
तुमनें अपनी बगिया में
कुछ बड़ी हुई, मैं कुछ मजबूत भी
कुछ कुदरत और तुम से मिले लालन पालन से
ऐसा नहीं, कि ना खिले हो फूल इस पौध पर,
तुम्हीं ने कहा था
मुझ पर आएं हैं फूल महक भरे
तुम्हें उम्मीद थी इन फूलों की महक दूर
तक बिखर जाएगी
जानती हूं मैं
यूं
तो बहुत से फूल हैं तुम्हारी बगिया में
कुछ फूल सूख कर भी महकते रहते हैं
कुछ पौध सदा बहार महकते फूल देती हैं
कमी मुझीं में है
आज भी मैं पौध हूँ, तुम्हारी बगिया की
और
महक कहीं खो गई
कुछ तो कमी है
कुछ तो कमी है
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