Wednesday, October 9, 2013

ऐसा भी होता है


निशा, क्‍या बात है, आरती अपना स्‍कूटर रोक कर क्‍या कह रही थी ?

अरे यार कुछ नहीं बस ये कि वो मुझे घर छोड़ देगी उस का घर मेरे घर के पास ही है।

फिर तुम गई क्‍यों नहीं ?

अरे यार एक बार गई थी, थोडी दूर तक जाने के बाद लगा कि सब लोग ऐसे देख रहे थे कि जैसे मैं और वो अजूबा हैं। 
उसका ये स्‍कूटर दोनों साइड के एक्‍सट्ररा पहियों के कारण देखते ही एहसास करवा देता हैं कि वो विकलांग है।

तो क्‍या हुआ?

नहीं यार लोग ऐसे घूर रहे थे जैसे मै भी------------मुझे तो बहुत शर्म आ रही थी। मैं तो उस के साथ कभी नहीं घर जा सकती। मैने तो आरती को बोल भी दिया है।

छः महीने बाद:

क्‍या हुआ निशा इतना गुस्‍से में क्‍यों लग रही हो ?
क्‍या बताऊ जब से आरती ने अपनी डिसेबिलटी के अनुसार एडजस्‍ट करवा कर नयी आटोमेटिक कार ली , इतनी धमंडी हो गई है कि आज मैने कहा कि तुम अगर घर जा रही तो मुझे छोड़ देनां । उसने साफ मना कर दिया कि वो घर नहीं जा रही है । जब से आरती कार में आने लगी है तो जाने खुद को क्‍या समझने लगी है । जमीन पर तो जैसे पांव ही नहीं हैं।शर्म भी नहीं आई कैसे साफ मना कर दिया, दोस्‍तो को कोई ऐसे भी मना करता है!!


No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.