सीमा स्मृति
1
ये सिलसिला
खौफ के घने साए
बढ़ते चले जाएँ,
माँ- बेटी -बहू
हर दिल पे छाएँ
काश ऐसा हो जाए।
2
वो नाजो पली
काम पर थी चली
बाधाएँ रोज़ मिलीं,
पार न पाए
हर ओर दानव
कैसे लाज बचाए।
3
हर शहर
दरिन्दे हैं घूमते
जाल हैं बिछाते,
क्यों मैं बेटी हूँ
रोज देते हैं घाव
देवी कह सताते ।
त्रिवेणी में प्रकाशित मेरा पहला
सदोका
हिमांशु भाई साहब को हार्दिक धन्यवाद
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