क्यों,कलम हाथ आते ही
खो जाते हैं शब्द
उन साथियों की तरह
जो खो गए मात्र
अपनत्व का दे एहसास।
क्यों, अभिव्यक्ति की छटपटाहट
गुजरे स्वपन की तरह
थमा
खण्डित,उम्मीद का खिलौना
लौट जाती है ।
क्यों,कोरे कागज पर
जिन्दगी को अंकित करने
की चाह दिखा,
भय,तूफान का
जिन्दगी पे एतबार की
हर कड़ी तोडना चाहती है।
फिर भी, मैं
खोजती हूँ वो साथी
जोडती हूँ,
उम्मीद का खण्डित वो खिलौना और
करना चाहती हूँ
एतबार जिन्दगी पे।
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